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भारतीय संस्कृति में जैनधर्म
प्राप्ति हुई है, जो राज्य संग्रहालय मथुरा में सुरक्षित हैं। अनेक हिन्दू देवताओं की प्रतिमाओं की तरह भगवान् बुद्ध की मूर्ति का निर्माण सबसे पहले मथुरा में हुआ। भारत के प्रमुख चार धर्म-भागवत्, शैव, जैन तथा बौद्ध-ब्रज की पावन भूमि पर शताब्दियों तक साथ-साथ पल्लवित-पुष्पित होते रहे। उनके बीच ऐक्य के अनेक सूत्रों का प्रादुर्भाव ललित कलाओं के माध्यम से हुआ, जिससे समन्वय तथा सहिष्णुता की भावनाओं में वृद्धि हुई। इन चारों धर्मों के केन्द्र प्रायः एक-दूसरे के समीप थे । बिना पारस्परिक द्वेषभाव के वे कार्य करते रहे। .
__भारत का एक प्रमुख धार्मिक कला का केन्द्र होने के नाते मथुरा को प्राचीन सभ्य संसार में बड़ी ख्याति प्राप्त हुई। ईरान, यूनान और मध्य एशिया के साथ मथुरा का सांस्कृतिक सम्पर्क बहुत समय तक रहा। उत्तर-पश्चिम में गंधार प्रदेश की राजधानी तक्षशिला की तरह मथुरा नगर विभिन्न संस्कृतियों के पारस्परिक मिलन का एक बड़ा केन्द्र बना । इसके फलस्वरूप विदेशी कला की अनेक विशेषताओं को यहाँ के कलाकारों ने ग्रहण किया और उन्हें देशी तत्त्वों के साथ समन्वित करने में कुशलता का परिचय दिया। तत्कालीन एशिया तथा यूरोप की संस्कृति के अनेक उपादानों को आत्मसात् कर उन्हें भारतीय तत्त्वों के साथ एकरस कर दिया गया । शकों तथा कुषाणों के शासनकाल में मथुरा में जिस मूर्तिकला का बहुमुखी विकास हुआ उसमें समन्वय की यह भावना स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।
___वैदिक पौराणिक धर्म के विकास को जानने तथा विशेष रूप से स्मार्त-पौराणिक देवी-देवताओं के मूर्तिविज्ञान को समझने के लिए ब्रज की कला में बड़ी सामग्री उपलब्ध है। ब्रह्मा, शिव, वासुदेव, विष्णु, देवी आदि की अनेक मूर्तियाँ ब्रज में मिली हैं, जिनका समय ईस्वी प्रथम शती से लेकर बारहवीं शती तक है। विष्णु की कई गुप्तकालीन प्रतिमाएँ अत्यन्त कलापूर्ण हैं। कृष्ण, बलराम की भी कई प्राचीन मूर्तियाँ मिली हैं। बलराम की सबसे पुरानी मूर्ति ई. पूर्व दूसरी शती की है, जिसमें वे हल और मसल धारण किये दिखाये गये हैं। अन्य हिन्दू देवता जिनकी मूर्तियाँ मथुरा कला में मिली हैं, कार्तिकेय, गणेश, इन्द्र, अग्नि, सूर्य, कामदेव, हनुमान आदि हैं । देवियों में लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, महिषमर्दिनी, सिंहवाहिनी, दुर्गा, सप्तमातृका, वसुधारा, गंगा-यमुना आदि के मूर्तरूप मिले हैं। शिव तथा पार्वती के समन्वित रूप अर्धनारीश्वर की भी कई प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं।
ब्रज में प्राप्त जैन अवशेषों को तीन मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है-तीर्थकर प्रतिमाएँ, देवियों की मूर्तियाँ और आयागपट्ट । चौबीस तीर्थंकरों में से अधिकांश
परिसंवाद-४
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