Book Title: Jain Vidya evam Prakrit
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 344
________________ परिशिष्ट १ ३२७ ग्रन्थ "तच्चवियारो" प्रकाशित हुआ है। प्राचीन पाण्डुलिपियों के आधार पर दोनों ग्रन्थों का सम्पादन डॉ. गोकुलचन्द्र जैन ने किया है । विकास योजनाएँ विभाग में विकास की निम्नलिखित योजनायें परिकल्पित हैं१. प्राकृत और जनविद्या के प्राचीन ग्रन्थ भण्डारों का सर्वेक्षण और दुर्लभ ग्रन्थों की माइक्रोफिल्म का संग्रह । २. प्राकृत के प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का योजनाबद्ध समालोचनात्मक सम्पा दन एवं प्रकाशन । ३. अन्तरशास्त्रीय अनुसन्धान की अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक योजनायें । ४. प्राकृत के शिक्षक तैयार करने के लिए समरस्कूल, वर्कशाप, अल्पकालीन उच्च अध्ययनसत्र आदि का आयोजन । ५. सम्बद्ध महाविद्यालयों में प्राकृत एवं जनविद्या के शिक्षण की व्यवस्था के लिए शैक्षणिक यात्राएँ तथा अन्य कार्यक्रम । परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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