Book Title: Jain Vidya evam Prakrit
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 348
________________ परिशिष्ट २ ३३१ विद्वानों की तीन पीढ़ियों के अध्येता एक साथ एक मंच पर सम्मिलित हुए। इससे प्राकृत एवं जनविद्या के अध्ययन-अनुसन्धान की बहुआयामी सम्भावनाएँ मुखरित हई। इस दृष्टि से यह गोष्ठी प्राकृत एवं जनविद्या के अध्ययन के क्षेत्र में 'मील का पत्थर' का कार्य करेगी। ४. यह संगोष्ठी सही अर्थों में एक 'अन्तरशास्त्रीय संगोष्ठी' मानी गयी, क्योंकि इसमें परम्परागत शास्त्रीय पद्धति, इतिहास, कला, संस्कृति, पूरातत्व, धर्म-दर्शन, भाषा और साहित्य, भाषाविज्ञान, समाजविज्ञान, मनोविज्ञान, आधुनिकविज्ञान आदि ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं के विद्वान् सम्मिलित हुए। ५. इस संगोष्ठी ने श्रमण परम्परा, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आधुनिक भारतीय भाषाएं आदि के अध्ययन-अनुसन्धान के क्षेत्र में व्याप्त जाति धर्म और सम्प्रदायगत संकोच, भ्रम और सीमाओं के 'बेरियर' को तोड़ा और इन विषयों के उदारतापूर्वक अध्ययन-अनुसन्धान की सम्भावनाओं को मुखरित किया। विद्वानों की दृष्टि में भारत के प्राचीन सांस्कृतिक नगर काशी के परम्परागत ऐतिहासिक विद्याकेन्द्र संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राकृत एवं जैनविद्या पर इस प्रकार की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन प्राच्य विद्याओं तथा भारत की सांस्कृतिक सम्पदा का आधुनिक विद्याओं और नये सन्दर्भो में अध्ययन-अनुसन्धान के क्षेत्र में एक अद्वितीय ऐतिहासिक घटना है, जिससे भारतीय मनीषा को नयी दृष्टि और प्रेरणा प्राप्त होगी। आयोजकों तथा समागत प्रतिनिधियों ने परिसंवाद गोष्ठी के सफलतापूर्वक आयोजन के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति, विभिन्न विभागों, अध्यापकों, छात्रों एवं कर्मचारियों, स्थानीय संस्थाओं के प्रति आभार व्यक्त करते हुए गोष्ठी में निष्कर्ष रूप में सर्वसम्मति से निम्नांकित संस्तुतियाँ प्रस्तुत स्वीकृत की .. संस्तुतियाँ प्राकृत एवं जैनागम विभाग, श्रमणविद्यासंकाय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा दिनांक १४ से १६ मार्च, १९८१ तक आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में सम्मिलित सभी विद्वान् प्रतिनिधि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग दिल्ली एवं इस विश्वविद्यालय के अधिकारियों का आभार मानते हैं, जिनके सक्रिय सहयोग से यह गोष्ठी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। संगोष्ठी में समागत प्रतिनिधि संगोष्ठी की परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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