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जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन निष्पत्ति के रूप में निम्नांकित संस्तुतियाँ प्रस्तुत करते हैं, जिनको क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
१. भारत के जिन विश्वविद्यालयों में प्राकृत एवं जनविद्या के अध्ययन के विभाग हैं, उन विभागों को विश्व विद्यालय अनुदान आयोग प्राध्यापकों एवं अनुसन्धान सुविधाओं के लिए आवश्यक अनुदान देकर समृद्ध करे, जिससे प्राकृत एवं जनविद्या के स्वतन्त्र अध्ययन को विकसित किया जा सके।
२. किसी एक विश्वविद्यालय में, जहाँ पारम्परिक पद्धति से प्राकृत एवं जनशास्त्र के शिक्षण आदि की व्यवस्था हो, वहाँ प्राकृत के अध्ययन-अनुसन्धान को गति प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग 'इन्स्टीट्यूट आफ प्राकृत स्टडीज' की स्थापना करे, जिसमें दर्शन, धर्म, तर्कशास्त्र, जैन मनोविज्ञान, प्राकृत-अपभ्रंश भाषा आदि विषयों के लिए स्वतन्त्र विभाग हों।
३. प्राकृत शिक्षण के लिए सभी स्तरों के पाठ्यक्रम में एकरूपता लाने हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से 'प्राकृत प्रशिक्षण वर्कशाप' आयोजित किया जाये ।
४. संगोष्ठी में समागत प्रतिनिधि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के इस निर्णय के लिए भी धन्यवाद ज्ञापन करते हैं कि आयोग ने 'प्राकृत स्टडीज' के लिए एक उपसमिति गठित की है एवं आवश्यक अनुदान राशि भी स्वीकृत की है। आवश्यकतानुसार इस उपसमिति के गठन, साधन एवं कार्यक्षेत्र में यथासमय सम्बर्द्धन किया जाये।
५. प्राकृत, पाली, अपभ्रंश एवं आधुनिक भाषाओं के साथ उनके सम्बन्ध स्पष्ट कर जनसामान्य को इन भाषाओं की जानकारी देने एवं इनके साहित्य और संस्कृति के तुलनात्मक अध्ययन के लिए देश की राजधानी में 'राष्ट्रीय प्राकृत अकादमी' की स्थापना केन्द्र सरकार की ओर से की जाये।
परिसंवाद-४
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