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परिशिष्ट १
प्राकृत एवं जैनागम विभाग
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी प्राकृत एवं जैनागम विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमणविद्या संकाय में एक स्वतंत्र विभाग है। १९५८ में इस विश्वविद्यालय की स्थापना के समय से ही विश्वविद्यालय ने प्राकृत का शिक्षण एवं परीक्षा प्रारम्भ की। प्राकृत के स्वतन्त्र अध्यापक के अभाव में जैनदर्शन के साथ इसका सहयोजन किया गया। उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियमों के अनुसार २६, दिसम्बर, १९७८ से प्रवृत्त परिनियमावली के अनुरूप विश्वविद्यालय के विभागों का संकायों के रूप में जब पुनर्गठन हुआ तो उसके अन्तर्गत प्राकृत एवं जैनागम विभाग को स्वतन्त्र विभाग का रूप प्रदान किया गया । २१ जुलाई १९७९ को डॉ. गोकुलचन्द्र जैन, आचार्य, एम. ए., पी-एच. डी. द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के साथ १९७९-८० शिक्षा सत्र से-'प्राकृत एवं जैनागम विभाग' का विधिवत् शुभारम्भ हुआ। विभागीय समितियां
परिनियमावली के अनुसार विभाग की तीन समितियाँ हैं-१. विभागीय समिति, २. अध्ययन बोर्ड, ३. अनुसन्धानोपाधि समिति । उक्त समितियों के अतिरिक्त विभागाध्यक्ष, संकायबोर्ड, विद्यापरिषद्, कार्यपरिषद् तथा सभा का पदेन और वरीयताक्रम में सदस्य होता है । पाठ्यक्रम और परीक्षाएँ
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा प्राकृत का पूर्व स्नातक से स्नातकोत्तर परीक्षा तक का निम्नाङ्कित पाठ्यक्रम संचालित हैपाठ्यक्रम परीक्षा
अवधि १. पूर्वस्नातक मध्यमा
चार वर्षीय २. स्नातक
शास्त्री
द्विवर्षीय
परिसंवाद-४
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