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जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन ३. स्नातकोत्तर आचार्य
त्रिवर्षीय ४. डिप्लोमा प्रमाणपत्रीय
एकवर्षीय प्राकृत के उक्त पाठ्यक्रमों में से शास्त्री, आचार्य और स्नातकोत्तर प्रमाणपत्रीय शिक्षण की व्यवस्था विश्वविद्यायीय विभाग में है। मध्यमा स्तर का शिक्षण सम्बद्ध विद्यालयों-महाविद्यालयों में होता है। आचार्य स्तर पर प्राकृत की विभिन्न शाखाओं के चार वर्ग बनाये गये हैं
१. अर्धमागधी प्राकृतागम, २. शौरसेनी प्राकृतागम, ३. महाराष्ट्री प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य । ४. प्राकृतागम एवं पाली त्रिपिटक । अनुसन्धानोपाधियां
विश्वविद्यालय में प्राकृत एवं जैनविद्या में अनुसन्धानोपाधि की निम्नप्रकार व्यवस्था है
१. पीएच. डी. स्तरीय विद्यावारिधि २. डी. लिट् स्तरीय
वाचस्पति ३. एम. फिल स्तरीय विशिष्टाचार्य ( पाठ्यक्रम विचाराधीन है )
उक्त अनुसन्धानोपाधि के लिए विश्वविद्यालय के सम्बद्ध अध्यादेशों के अनुसार पंजीकरण और निर्देशन की व्यवस्था है। नियमानुसार निःशुल्क छात्रावास, पुस्तकालय तथा शोध छात्रवृत्तियाँ भी प्रदेय हैं । विभागीय पुस्तकालय
विभाग के प्रारम्भ होते ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से विभागीय पुस्तकालय आरम्भ किया गया है। पुस्तकालय में अभी लगभग २५ हजार रुपये मूल्य के ग्रन्थ क्रय किये गये हैं। प्राकृत-जैनविद्या ग्रन्थमाला
विश्वविद्यालय में प्राच्य ग्रन्थों के प्रकाशन के लिए विभिन्न ग्रन्थमालायें हैं। प्राकृत एवं जैनागम विभाग के प्रस्ताव पर विश्वविद्यालय ने “प्राकृत-जनविद्या-ग्रन्थमाला" नाम से एक ग्रन्थमाला प्रारम्भ कर दी है। इस ग्रन्थमाला में 'परमागमसारो' नामक प्राकृत ग्रन्थ के प्रकाशन के साथ इस ग्रन्थमाला का श्रीगणेश हुआ। श्रुतमुनिविरचित यह ग्रन्थ इसके पूर्व सर्वथा अप्रकाशित था। इसी ग्रन्थमाला में दूसरा प्राकृत परिसंवाद-४
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