________________
१३३
जैनपुराणों में वर्णित प्राचीन भारतीय आभूषण
२. अवतंस''-पद्मपुराण में इसे चंचल (चंचलावतंसक) वर्णित किया गया है। अधिकांशतः यह पुष्प एवं कोमल पत्तों से निर्मित किया जाता था। बाण भट्ट ने हर्षचरित में कान के दो अलंकार अवतंस (जो प्रायः पुष्पों से निर्मित किया जाता था) एवं कुण्डल का उल्लेख किया है।
३. तालपत्रिका'६-कान में धारण करने का आभूषण होता था। इसे पुरुष अपने एक कान में धारण करते थे। इसको महाकान्ति वाली वणित किया गया है।
४. बालिक-स्त्रियाँ अपने कानों में बालियाँ धारण करती थीं। सम्भवतः ये पुष्प-निर्मित होती थीं।
(स) कण्ठाभूषण-स्त्री-पुरुष दोनों ही कण्ठाभरण का प्रयोग करते थे । इसके निर्माण में मुक्ता और स्वर्ण का ही प्रयोग होता था। इससे भारतीय आर्थिक समृद्धि की सूचना मिलती थी और यह भारतीय स्वर्णकारों की शिल्प कुशलता का भी परिचायक था। इस प्रकार के आभूषणों में यष्टि, हार तथा रत्नावली . आदि प्रमुख हैं।
१. यष्टि (मौली)--इस आभूषण के पाँच प्रकार-१. शीर्षक, २. उपशीर्षक, ३. प्रकाण्ड, ४. अवघाटक और ५. तरल प्रबन्ध महापुराण में वर्णित हैं ।
i. शीर्षक-जिसके मध्य में एक स्थूल मोती होता है उसे शीर्षक कहते हैं ।
ii. उपशीर्षक-जिसके मध्य में क्रमानुसार बढ़ते हुए आकार के क्रमशः तीन मोती होते हैं वह उपशीर्षक कहलाता है ।
i. प्रकाण्ड-वह प्रकाण्ड कहलाता है जिसके मध्य में क्रमानुसार बढ़ते हुए आकार के क्रमशः पाँच मोती लगे हों।
iv. अवघाटक-जिसके मध्य में एक बड़ा मणि लगा हो और उसके दोनों ओर क्रमानुसार घटते हुए आकार के छोटे-छोटे मोती हों, उसे अवघाटक कहते हैं।२ ।
५४. पद्म, ३।३, ७१।६; तुलनीय रघुवंश, १३॥४९ । ५५. वासुदेवशरण अग्रवाल-वही, पृ० १४७ । ५६. पद्म, ७१।१२। ५७. वही, ८७१। ५९. महा, १६।५२ ।
६०. महा, १६।५२ । ६१. महा, १६१५३ ।
६२. महा, १६१५३ ।
५८. महा, १६।४७ ।
परिसंवाद-४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org