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वैदिक भाषा में प्राकृत के तत्त्व
घिष्ण्ये इमे ( ऋ७-७२-३) वन्दामि अज्जवइरं सोमो गौरी अधिश्रितः ( ऋ ९-१२-३ ) रुक्खादो आअओ युस्मै इत् ( ऋ८-१८-१९) देवीए एत्थ अस्मै वा वहतम् ( ऋ८-५-१५) निसा अरो त्वे इत् (ऋ १-२९-६)
एओ एत्थ घनसा उ ईमहे ( ऋ१०-६-१०) अहो अच्छरिअं होता न ई यं ( साम ३-७९२ ) गन्ध उडि इन्द्र इ हयां ( साम ३-७२६ ) निसिअरो बहुले उये ( यजु ११-३०-१) रयणी अरो
मणु अत्तं
सन्दर्भ
१. (क) वैदिक व्याकरण
डा० रामगोपाल २. (ख) वैदिक व्याकरण
मेक्डोनल, अनु-डा० सत्यव्रत शास्त्री, पैरा० ६ त भाषाओं का व्याकरण डा० पिशेल (ख) प्राक त मार्गोपदेशिका पं० बेचरदास दोशी, पृ० ११५ (ग) प्राकृत भाषा
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संस्कृति में उनका अवदान डा० कत्रे, जयपुर १९७२ पृ० ६१-६२ (ङ) प्राकृत भाषा एवं साहित्य का
आलोचनात्मक इतिहास डा० नेमिचन्द्र शास्त्री पृ० ४-९ (च) प्राकृत विमर्श
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पृष्ठ ५२, ६२, ७० (ख) तुलनात्मक पालि-प्राकृत अपभ्रंश व्याकरण
डा० सुकुमार सेन, इलाहाबाद १९६९ भूमिका
पृ० १-२ रकल प्रामर आफ द अपभ्रंश प्रो० तगारे
परिसंवाद-४
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