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प्राकृत तथा अन्य भारतीय भाषाएँ
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( ३ ) अकारण अनुनासिक प्रवृत्ति का पाया जाना । यथा-गाम-गांव, महिषी
भइस ।
( ४ ) विभिन्न वर्गों के स्थान पर दूसरे वर्णों का प्रयोग । यथा - - शकुन - सगुन, किस्सा - खिस्सा, केला - केरा ।
भोजपुरी भाषा में ध्वनितत्त्व के अतिरिक्त व्याकरण की दृष्टि से भी प्राकृत की प्रवृत्तियां पायी जाती हैं । भोजपुरी के संज्ञारूपों की रचना पर प्राकृत का स्पष्ट प्रभाव है तथा विभक्ति-लोप के साथ परसर्गों का प्रयोग अपभ्रंश के प्रभाव से इसमें आया है । षष्ठी विभक्ति में भोजपुरी में जो परसर्ग जोड़े जाते हैं, वे प्राकृत के हैं । यथा
उनकरा काम भी करत अइव | तोहरा काम से हम अलग रहिता ।
यहाँ करा और हरा क्रमशः प्राकृत की कर धातु और अम्हारा आदि शब्दों से आये प्रतीत होते हैं ।
भोजपुरी के सर्वनामों का प्राकृत से सीधा सम्बन्ध है । वैकल्पिक रूपों का पाया जाना प्राकृत की ही प्रवृति है । कुछ सर्वनाम दृष्टव्य हैं
प्रा० - मए तु तुम्ह तुम्हाण अप्पाणं ।
भो० - मयं तु तुहें तोहनी अपने ।
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भोजपुरी भाषा की क्रियाओं में भी प्राकृत के तत्त्व उपलब्ध हैं । अधिकांश धातुओं का मूल प्राकृत धातुएं हैं । यथा - कूटे > कुट्ट, काढ़ > कड्ढ, चुकचुक्क, डूब > डुम्ब, सीझ सिज्झ, आदि । भोजपुरी में प्राकृत के समान ही वर्तमान, भूत, भविष्यत्, आज्ञाविधि और संभावना ये पांच काल होते हैं । भोजपुरी की क्रियाएं प्राकृत की भाँति ही सरल हैं ।
प्राकृत के अनेक शब्द भोजपुरी में स्वीकार कर लिये प्राकृत के प्रत्ययों को जोड़कर बनाये गये हैं तथा कुछ गये हैं । यथा—
भोजपुरी
इनकरा
गमइ
घरेलु
हां मझिला
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इन + करा
गम + इ
घर + एलु
मज्झिल्ल + आक
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गये हैं । कुछ शब्द शब्द सीधे ले लिये
प्राकृत का प्रत्यय
केर
इल्ल
आल
हि हा
इल्लअ
परिसंवाद -४
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