Book Title: Jain Vidya evam Prakrit
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 332
________________ ३१५ अपभ्रंश एवं हिन्दी जैन साहित्य में शोध के नये क्षेत्र ७. १६वीं शताब्दी के हिन्दी जैन कवि ८. हिन्दी के जैन रूपक काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन ९. कविवर बूचराज-व्यक्तित्व एवं कृतित्व १०. हिन्दी के जैन कवियों की बावनियों का उद्भव एवं विकास ११. कविवर ठक्कुरसी–व्यक्तित्व एवं कृतित्व १२. ब्रह्म रायमल्ल की रचनाओं का सांस्कृतिक अध्ययन १३. भट्टारक रतनकोति--व्यक्तित्व एवं कृतित्व ४. जैन संत कुमुदचन्द्र--व्यक्तित्व एवं कृतित्व १५. नेमि राजुल साहित्य-एक अध्ययन १६. भट्टारक यशोधर ---व्यक्तित्व एवं कृतित्व १७. महाकवि बनारसीदास--व्यक्तित्व एवं कृतित्व १८. समयसार नाटक का आत्म दर्शन १९. कविवर रूपचन्द- व्यक्तित्व एवं कृतित्व २०. हिन्दी गद्य लेखक--पाण्डे राजमल्ल २१. १७वीं शताब्दी के हिन्दी गद्य निर्माता २२. बनारसीदास एवं उनके समकालीन कवि २३. भैया भगवतीदास--व्यक्तित्व एवं कृतित्व २४. पंडित भगौतीदास--व्यक्तित्व एवं कृतित्व २५. कविवर आनन्दघन - व्यक्तित्व एवं कृतित्व २६. महाकवि समयसुन्दर के काव्यों का अध्ययन २७. पार्श्वपुराण का सांस्कृतिक एवं तात्विक अध्ययन २८. महाकवि भूधरदास के पदों का सांस्कृतिक विवेचन २९. कविवर द्यानतराय- व्यक्तित्व एवं कृतित्व ३०. बारह खड़ी साहित्य ३१. गद्य पद्य निर्माता--महाकवि दौलतराम कासलीवाल ३२. दौलतराम कासलीवाल के काव्यों का सांस्कृतिक अध्ययन ३३. हिन्दी गद्य साहित्य के विकास में महाकवि दौलतराम का योगदान ३४. किशनसिह-व्यक्तित्व एवं कृतित्व ३५. कविवर खुशालचन्द काला व्यक्तित्व एवं कृतित्व ३६. जैन हिन्दी पुराण साहित्य--सांस्कृतिक अध्ययन परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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