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जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
जो अज्ञानी से अण्णाणी> अन्नाड़ी>अनाड़ी विकसित है, हिन्दी में इसी अर्थ में 'अनाड़ी' शब्द प्रयुक्त है। अनाड़ी के हाथ में पड़ी मोती की माला सी कर्पूरमंजरी कीदशा है; ( भारतेंदु )। 'ठानत अनीति आनि, नीति लै अनारी ( अनाड़ी ) की' ( रत्नाकर )।
२२. अखाड़ा-अक्षवाट >अक्ख आड > अक्खाड> अखाड़ा। राजभवन का वह स्थान जहाँ पर सार्वजनिक उत्सवों का आयोजन होता था।
डा० देवेन्द्रनाथ शर्मा ने संस्कृत आखात से (आखात > अखाद >अखाड़ा) जो अखाड़े की व्युत्पत्ति मानी है, वह गलत है। त और द को मूर्धन्यभाव होता है, परंतु इसमें 'र' का होना जरूरी है जैसे गर्त मे गड्ढा बनता है। अखाड़े का अभिप्राय रंगभूमि से है। जैसे
"लंका सिखर उपर अगारा तहं दसकन्धर देख अखारा'। "नट नाटक पतुरिनी औ बाजा
आनि अखार सबै तहं साजा"।-पद्मावत २३. अहूठा-अहूठा का संक्षिप्त रूप हूठा भी है। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल इसकी व्युत्पत्ति अध्युष्ट से मानते हैं, परन्तु यह शब्द संस्कृत में इस अर्थ में नहीं है । अहूठा का अर्थ है साढ़े तीन हाथ ।
__हत्थ अट्ठह देवलो बालहं नाहि पवेसु । साढ़े तीन हाथ की देवली है, जिसमें मूखों का प्रवेश नहीं है।
___ “अठहु हाथ तन सरवर हियो कँवल तेहिं मांह" |-पद्मावत
मूल शब्द अर्द्ध + त्रि [ आधा और तीन ] से [ अर्द्धत्रि> अड्ण ट्टि>अढट्टि > अहुट्ठ> अहुठा ] विकास हुआ।
२४. असरार-कबीर कोश में असरार को सर सर से, और असरारा को फारसी शरीर ( शैतान ) से विकसित माना गया है। वस्तुतः असरार के मूल में अजस्रतर शब्द है । अजस्रतर अअ सर अर असरार > असराल असरार । स्वयंभू और पुष्पदंत ने इसका प्रयोग किया है । कबीर कहते हैं:
"मन्मथ करम कसै अस रारा
कलपत विदु कसै तिहि द्वारा" २५. आरसी-कहावत है हाथ कंगन को आरसी क्या ? आदशिका>आअरसिआ>आरसिआ, >आरसी।।
२७. अधेड़-अर्द्धवृद्ध > अद्ध इड्ढ> अद्धेड्ढ > अधेड्ढ > अधेड़। यानी अधबूढ़ा।
परिसंवाद-४
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