Book Title: Jain Vidya evam Prakrit
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 307
________________ २९० लड़का मडु जनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन छोयर छोकरा डोय डोयो लकड़ी की चम्मच मडय मृत डब्ब डाबु बांया लीट लीटी रेखा रान जंगल गुजराती के बहुत से सर्वनाम भी अपभ्रंश से सीधे आये हैं । हेमचन्द्र के अनुसार अपभ्रंश में कथं, तथा केथा को एम और इम आदेश होते हैं । जैसे केम समप्पउ दुढ दिण गुजराती के केम छ, एम छे आदि प्रयोगों में यही प्रवृत्ति देखी जा सकती है। पूर्वी भाषाएँ पूर्वी भारत में इस समय कई भाषाएं प्रचलित हैं। उनमें भोजपुरी, मगही, मैथिली, उड़िया, बंगाली और असमिया प्रमुख हैं। इनमें कई विधाओं में साहित्य भी लिखा गया है तथा ये बोल-चाल की भी भाषाएँ हैं। इन भाषाओं का विकास जिस क्षेत्र में हुआ है, वहाँ प्राचीन समय से प्राकृत व अपभ्रंश बोली जाती रही हैं, जिसे मागधी व अर्धमागधी कहा जाता था। अतः स्वाभाविक रूप से ये भाषाएँ मागधी प्राकृत व अपभ्रंश से प्रभावित होकर विकसित हुई हैं। इनका प्राकृत व अपभ्रंश से क्या और कितना सम्बन्ध है, इस विषय पर विद्वानों ने विशेष अध्ययन प्रस्तुत किये हैं । तुलनात्मक दृष्टि से कुछ साम्य-वैषम्य यहाँ द्रष्टव्य हैभोजपुरी बिहार में बोली जाने वाली भाषाओं में भोजपुरी प्रमुख है। यद्यपि इसके बोलने वाले विभिन्न प्रान्तों में भी निवास करते हैं। भोजपुरी भाषा के व्याकरण एवं भाषा वैज्ञानिक तत्त्वों के अध्ययन के आधार पर इस भाषा का सम्बन्ध अर्धमागधी प्राकृत के साथ अधिक दृढ़ होता है। इस भाषा में प्राकृत तत्त्वों की प्रचुरता है। संक्रान्तिकाल के जो ग्रन्थ उपलब्ध हैं उनमें भी भोजपुरी के उदाहरण प्राप्त होते हैं। ध्वनितत्त्व की दृष्टि से भोजपुरी में प्राकृत के समान निम्न विशेषताएं पायी जाती हैं । (१) ह्रस्व स्वरों का दीर्घ और दीर्थों का ह्रस्व हो जाना । यथा -जीहा-जोभ चक्क-चाक, आआस-अकास । (२) ध्वनि का विभिन्न स्वरों में परिवर्तन । यथा-- किसन-किसुन, मच्चु-मिरतु, माय-मतारी। परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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