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जैनपुराणों में वर्णित प्राचीन भारतीय आभूषण
१३१ नाम का है। साधारणतया दोनों शब्द पर्यायवाची हैं। यह सिर में पहनने का गहना था।
४. मुकुट २ ४.-राजा और सामन्त दोनों के ही सिर का आभूषण था। किरीट की अपेक्षा इसका मूल्य कम होता था। तीर्थंकरों के मुकुट धारण करने का उल्लेख जैनग्रन्थों में मिलता है। राजाओं के पंच चिह्नों में से यह भी था। निःसंदेह ही मुकुट का प्राचीनकाल में महत्त्व अत्यधिक था। विशेषतः इसका प्रचलन राजपरिवारों में था।
५. मौलि."--डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार केशों के ऊपर के गोल स्वर्णपट्ट को मौलि कहते हैं । ३६ रत्न-किरणों से जगमगाने वाले, स्वर्णसूत्र में परिवेष्टित एवं मालाओं से युक्त मौलि का उल्लेख पद्मपुराण में उपलब्ध है। किरीट से इसका स्थान नीचा प्रतीत होता है, किन्तु सिर के अलंकारों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान था।
६. सीमान्तक मणि स्त्रियाँ अपनी माँग में इसको धारण करती थीं। आज भी इसका प्रचलन माँग-टीका के नाम से है।
७. उत्तंस३८ -किरीट एवं मुकुट से भी यह उत्तम कोटि का होता था। तीर्थकर इसको धारण किया करते थे। सभी प्रकार के मुकुटों से इसमें सुन्दरता अधिक होती थी। इसका प्रयोग विशेषतः धार्मिक नेता ही करते थे । इसका आकार किरीट एवं मुकुट से लघु होता था, परन्तु मूल्य इनसे अधिक होता था ।
८. कुन्तली३१-किरीट के साथ ही इसका उल्लेख मिलता है । इससे ज्ञात होता है कि कुन्तली आकार में किरीट से बड़ी होती थी। कलगी के रूप में इसको केश में लगाते थे। किरीट के साथ ही इसको भी धारण किया जाता था। इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनों ही किया करते थे। जनसाधारण में इसका प्रचलन नहीं था। इसके धारण करने वालों के व्यक्तित्व में कई गुनी वृद्धि हो जाती थी । अपनी समृद्धि एवं प्रभुता के प्रदर्शनार्थ स्त्रियाँ इसको धारण करती थीं।
३४. वही, ३९१, ३।१३०, ५।४; ९।४१, १०।१२६; पद्म, ८५।१०७, हरिवंश, ४१।३६
तुलनीय-रघुवंश, ९।१३ । ३५. पद्म, ७११७, ११॥३२७; महा, ९।१८९; तुलनीय-रघुवंश, १३।५९ । ३६. वासुदेवशरण अग्रवाल-हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. २१९ । ३७. पद्म, ८७०। ३८. महा, १४१७ । ३९. वही, ३१७८ ।
परिसंवाद-४
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