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वैदिक भाषा में प्राकृत के तत्त्व
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संस्कृत
(५०) वीप्सा
वैदिक भाषा में वीप्सा शब्दों का प्रयोग प्राकृत की तरह ही हुआ है । यथा-- एक्कमेक्कं ( ऋ १,२०,७) एक्कमेक्कं-एक्केक्कं रूपं रूपं ( अ १,२१,३)
एक्कं एक्कं भूयो भूयो ( अ ४,२१,२) भूयो भूयो (५१) क्रिया रूप
जिस प्रकार वैदिक भाषा में धातुओं में किसी प्रकार का गण भेद नहीं है, उसी प्रकार प्राकृत भाषा में धातुओं में गण भेद नहीं है। यथावैदिक
प्राकृत हनति
हन्ति
हनवि हणइ शयते
शेते
सयते सयए भेदति
भिनति
भेदति मरते
म्रियते
मरते मरए कुछ वैदिक क्रियारूपों के वर्तमानकाल प्रथम पुरुष एकवचन में 'ए' प्रत्यय का प्रयोग हुआ है।
शोभे (ऋ १,१२०,५) शोभते सोभए सोभइ (हे० ३,१५८) दुहे (अ १,११,१२)
दुहते शये (वे० प्र० ७,१,१ .
सयए सयइ ईसे (स० प्र० ४६८)
ईसे ईसए आज्ञार्थक लोट लकार में भी वैदिक भाषा और प्राकृत भाषा में कुछ समानता देखने को मिलती है । मध्यम पुरुष एकवचन में हि एवं लोप प्रत्यय की प्रवृति है । जैसे-- गच्छहि
गच्छहि पाहि (ऋ १,२,१)
पाहि दह ( अ १,२८,२ )
दह गच्छ ( यजु ४,३४,१)
गच्छ तिर ( यजु ५,३८,१)
तिर भज ( ऋ१,२७,५)
भज बोधि ( वै० प्र०)
बोघि बोहि
शयते
परिसंवाद-४
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