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जैनपुराणों में वर्णित प्राचीन भारतीय आभूषण अग्रवाल ने कटक-कदम्ब (पैदल सिपाही) की व्याख्या में बताया है कि सम्भवतः कटक (कड़ा) धारण करने के कारण ही उन्हें कटक-कदम्ब कहा जाता था' १३ ।
(य) कटि-आभूषण-कटि आभूषणों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। काञ्ची, मेखला, रसना, दाम, कटिसूत्र आदि की गणना कटि आभूषणों में होती है । १४
१. काश्नी-जैन पुराणों में कटिवस्त्र से सटाकर धारण किए जाने वाले आभूषण हेतु काञ्ची शब्द का प्रयोग हुआ है। काञ्ची चौड़ी पट्टी की स्वर्ण-निर्मित होती थी। इसमें मणियों, रत्नों एवं धुंधरुओं का भी प्रयोग होता था'१५ ।
२. मेखला १६यह कटि में धारण किया जाने वाला आभूषण था। स्त्रीपुरुष दोनों मेखला धारण करते थे। इसकी चौड़ाई पतली होती थी। सादी कनक मेखला एवं रत्नजटित मेखला या मणि मेखला होती थी११७ ।
३. रसना -यह भी काञ्ची एवं मेखला की भाँति कमर में धारण करने का आभूषण था। रसना भी चौड़ाई में पतली होती थी। इसमें धुंघरू लगने के कारण ध्वनि होती है। अमरकोष में काञ्ची, मेखला एवं रसना पर्यायवाची अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं । इनको स्त्रियाँ कटि में धारण करती थीं। १९ ।
४. दाम-यह कमर में धारण करने का आभूषण था। दाम कई प्रकार के होते थे। काञ्चीदाम, मुक्तादाम, मेखलादाम एवं किंकिणीयुक्त मणिमयदाम आदि प्रमुख हैं। २० ।
५. कटिसूत्र-इसको स्त्री-पुरुष दोनों कटि में धारण करते थे।२१ ।
११३. वही, पृ० १३१ ।
११४. अमरकोष २।६।१०८। . ११५. पद्म, ८७२, महा, ७।१२९, १२।१९, तुलनीय ऋतुसंहार, ६।७। ११६. पद्म, ७१।६५, महा, १५।२३, तुलनीय रघुवंश, १०.८; कुमारसम्भव, ८.२६ । ११७. हरिवंश, २।३५ । ११८. महा, १५।२०३, तुलनीय रघुवंश, ८.५८, उत्तरमेघ, ३, ऋतुसंहार, ३.३, कुमार
सम्भव ७-६१ । ११९. स्त्रीकट्यां मेखला काञ्ची सप्तकी रसना तथा । -अमरकोष २।६।१०८ । १२०. महा, ४।१८४, ८।१३, ११।१२१, १४।१३ । १२१. वही, १३।६९, १६।१९, हरिवंश, ७।८९, ११।१४ ।
परिसंवाद-४
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