________________
ટ
जैनविद्या एवं प्राकृतं : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन भुजा के ऊपरी छोर को सुशोभित करे उसे केयूर कहते हैं और 'अंगं दयते अंगदम्' अर्थात् जो अंग को निपीड़ित करे वह अंगद होता है ' 1
०२
२. केयूर ११३ - स्त्री-पुरुष दोनों ही अपनी भुजाओं पर केयूर (अंगद या केयूर) धारण करते थे' ४ । केयूर स्वर्ण एवं रजत के बनते थे । जिस पर लोग अपने हेम केयूर का भी वर्णन कई स्थलों पर भर्तृहरि ने केयूर का प्रयोग पुरुषों के
जड़वाते थे । होती थी."
०६
स्तर के अनुसार मणियाँ भी हुआ है | केयूर में नोक भी अलंकार के अन्तर्गत किया है"
1
।
३. मुद्रिका - हाथ की अंगुली में धारण करने का आभूषण मुद्रिका है । इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष समान रूप से करते हैं । प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में स्वर्णजटित, रत्नजटिव, पशु-पक्षी, देवता - मनुष्य एवं नामोत्कीर्ण मुद्रिका का उल्लेख है १०७ । पद्मपुराण में अंगूठी के लिए उर्मिका शब्द प्रयुक्त हुआ है । त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित में स्त्री के आभूषण के रूप में अंगूठी का वर्णन है '
૮
०९
४. कटक ११ - प्राचीन काल से हाथ में स्वर्ण, रजत, हाथी दाँत एवं रखनिर्मित कटक धारण करने का प्रचलन था । इसका प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनों ही करते थे । रत्नजटित चमकीले कड़े के लिए दिव्य कटक शब्द का प्रयोग महापुराण में हुआ है । हर्षचरित में कटक और केयूर दोनों का वर्णन आया है १२ । वासुदेवशरण
1
។ ។
१०२. द्रष्टव्य, गोकुलचन्द्र जैन - यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४७ ।
१०३. महा. ६८ ६५२, ३।१५७, ९ ४१, १५1१९९, हरिवंश, ७७८९, पद्म ३ २, ३ १९०, ८१४१५, ११।३२८, ८५।१०७, ८८1३१ रघुवंश, ७.५० ।
१०४. नरेन्द्र देव सिंह - भारतीय संस्कृति का इतिहास, पृ० ११५ ।
१०५. रघुवंश, ७५० ।
१०६. भर्तृहरिशतक, २.१९ ॥
१०७. हरिवंश, ४९।११, महा ७।२३५, ४७।२१९, ५९।१६७, ६८।३६७ ॥
१०८. पद्म, ३३।१३१, तुलनीय रघुवंश, ६-१८ 1
१०९. ए० के० मजूमदार - चालुक्याज ऑफ गुजरात, पृ० ३५९ पर उद्धृत ।
११०. पद्म ३।३; हरिवंश, ११।११; महा, ७।२३५, १४।१२, १६।२३६, तुलनीय
मालविकाग्निमित्रम्, अंक २, पृ० २८६ |
Jain Education International
१११. महा, २९।१६७ ।
११२. वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १७६ ।
परिसंवाद-४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org