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जैन आगमों में सूक्ष्म शरीर की अवधारणा और आधुनिक विज्ञान
१८९ निर्णायक है जो उनके स्निग्ध एवं रूक्ष गुण पर निर्भर करती है। इस प्रकार जैनों ने पुद्गल विज्ञान के आधार पर पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्थिर किया है। परामनोविज्ञान के प्रयोगों की सार्थकता अधिक महत्त्वपूर्ण होगी जब सूक्ष्म शरीर के संहति रहित व्यवहार के क्षेत्र में नये प्रयोग होंगे।
. (३) विज्ञान के अनुसार प्रकाश की गति अधिकतम होती है। जैन दर्शन में प्रकाश के पुद्गलों को आठ स्पर्श वाले स्थूल पुद्गल कहा है। सूक्ष्म पुद्गलों की गति, स्थूल पुद्गलों की गति से अधिक होने के प्रमाण जैन आगमों में उपलब्ध हैं। (१) एक परमाणु, एक समय में १४ रज्जू तक की यात्रा कर लेता है। (२) मन तथा वचन की वर्गणाएँ भी एक समय में बहुत दूरी तय कर लेती है और दूसरे के मन के भाव को जान लेती हैं। (३) सूक्ष्म शरीर भी लोक के दूरतम छोर तक सीधी गति से एक समय में ही पहुँच जाते हैं। (४) जहाँ भी चार स्पर्श वाली पुद्गल वर्गणाओं का वर्णन है, उनकी गति अत्यन्त तीव्र मानी है।
जैन आगमों में वर्णित इन उदाहरणों से काल की सूक्ष्मतम इकाई समय और आकाश को सूक्ष्मतम इकाई प्रदेश के सम्बन्ध में चिन्तन आवश्यक है । सूक्ष्म शरीर जहाँ लोकान्त तक जाते हैं उसमें एक समय लगता है तो एक आकाश प्रदेश से निकटतम दूसरे आकाश प्रदेश तक गमन करने में भी एक समय लगता है । आगमों में जहाँ भी सूक्ष्म पुद्गलों के गमन के बारे में वर्णन है, जो जीव के लिए उपयोगी है, जैसे मन, वचन, श्वासोच्छ्वास, तैजस और कार्मण शरीर, लेश्या, वहाँ उनकी गति के लिए एक समय का ही प्रयोग किया गया है। इससे यह भ्रम होता है कि संभवतः जैनों के पास सूक्ष्म काल के सम्बन्धी कोई स्पष्ट धारणा नहीं थी अथवा सूक्ष्म पुद्गल आकाश एवं काल के निरपेक्ष गमन करते होंगे। भगवती सूत्र में काल के विभिन्न मान दिए हैं१९ तथा नारक और देवों तक के आयुष्य काल का प्रचुर वर्णन किया है । अतः यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि जैनों के पास काल की कोई स्पष्ट अवधारणा नहीं रही होगी। यह मानना न्यायसंगत होगा कि सूक्ष्म पुद्गल तथा सूक्ष्म शरीर का गमन आकाश तथा काल निरपेक्ष होता होगा, तभी वे एक समय में विभिन्न दूरियाँ तय कर सकेंगे। वैज्ञानिक आइन्स्टीन के अनुसार आकाश और काल कोई स्वतन्त्र तथ्य नहीं हैं। ये पदार्थ के धर्ममात्र हैं। सूक्ष्म पुद्गलों के लिए ही जैनों को दो द्रव्य, धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिकाय स्वीकार करने पड़े होंगे२० जो कि उनकी गति एवं स्थिति में सहायक हो सकें, क्योंकि स्थूल पुद्गल की गति आकाश एवं काल सापेक्ष होती है, उन पुद्गलों में संहति होती है अतः वे स्वयं के
परिसंवाद-४
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