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जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन मणि२२, मरकत मणि ३, पद्मरागमणि' ४, जातञ्जन२५(कृष्णमणि), पद्मराग ६ (कालमणि), हैमरे ७(पीतमणि) आदि आभूषण बनाने के लिए उक्त मणियों का प्रयोग करते थे। आभूषणों के प्रकार एवं स्वरूप
नर-नारी दोनों ही आभूषण-प्रेमी होते थे । इनके आभूषणों में प्रायः साम्यता है। कुण्डल, हार, अंगद, वलय, मुद्रिकादि आभूषण स्त्री-पुरुष दोनों ही धारण करते थे । शिखामणि, किरीट एवं मुकुट पुरुषों के प्रमुख आभूषण थे । शरीर के अंगानुसार पृथक्-पृथक् आभूषण धारण किया करते थे। इनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है
(अ) शिरोभूषण-सिर को विभूषित करने वाले आभरणों में प्रमुख मुकुट, किरीट, सीमन्तकमणि, छत्र, शेखर, चूणामणि, पट्ट आदि हैं। महापुराण के अनुसार सिन्दूर से तिलक भी लगाते थे ।२८
१.किरीट-२९चक्रवर्ती एवं बड़े सम्राट ही इसको धारण करते थे । इसका निर्माण स्वर्ण से होता था। यह प्रभावशाली सम्राटों की महत्ता का सूचक था ।
२. किरीटी३०–महापुराण में इसका वर्णन है। स्वर्ण और मणियों द्वारा किरीटी निर्मित होती थी। किरीट से यह छोटा होता था । स्त्री-पुरुष दोनों ही इसको धारण करते थे।
३. चूड़ामणि३१ –पद्मपुराण में चूड़ामणि के लिए मनिरत्न का प्रयोग मिलता है१२ । राजाओं एवं सामन्तों द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था । चूड़ामणि के मध्य में मणि का होना अनिवार्य था। महापुराण में चूड़ामणि के साथ चूड़ारत्न भी व्यवहृत हुआ है। इन दोनों में अलंकरण की दृष्टि से साम्यता थी किन्तु भेद मात्र
२२. वही, १३।१५४, पद्म, ८०७५। २३. वही, १३॥१३८; हरिवंश, २।१० । २४. वही, १३।१३६, वही २।९।
२५. हरिवंश, ७७ । २६. हरिवंश, ७७२ । २७. वही, ७७२ ।
२८. महा, ६८।२०५ । २९. वही, ६८।६५०; ११।१३३; पद्म, ११८।४७; तुलनीय-रघुवंश, १०७५ । ३०. वही, ३।७८। ३१. पद्म, ३६।७; महा, १।४४, ४।९४, १४।८, हरिवंश, ११।१३ । ३२. वही, ७१६५। ३३. महा, २९।१६७; तुलनीय कुमारसम्भव, ६।८१; रघुवंश, १७।२८ ।
परिसंवाद-४
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