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सत्रहवीं शताब्दी के उत्तरप्रदेश के कतिपय विशिष्ट जैन व्यापारी
(६) जैन समाज में धार्मिक विश्वास की जड़ें काफी गहरी थीं । उस समय किसी व्यक्ति की सम्पन्नता का अनुमान उसके द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों से लगाया जाता था । अगर किसी व्यक्ति ने तीर्थ यात्रा संघ निकाला, तो वह 'संघवी' या 'संघपति', यदि कई तीर्थों के लिए संघ निकाला तो 'संघाधिपति' कहलाता था । ये पदवियाँ जैन समाज में सम्पन्नता का परिचायक थीं तथा उनको समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त होता था । इन सब कार्यों में काफी धन खर्च होता था । प्रायः लगभग सभी जैन व्यापारियों ने धार्मिक कृत्य किये ।
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इतिहास विभाग पटना विश्वविद्यालय पटना, बिहार ।
परिसंवाद - ४
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