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भारतीय संस्कृति में जैनधर्म
उनके कार्य सदा स्मरणीय रहेंगे। जैन धर्माचार्यों ने दक्षिण भारत के दो प्रसिद्ध राजवंशों-राष्ट्रकूट तथा गंग वंश के तीव्र विवादों को दूर कर उनमें मेल कराया। अनेक आचार्य मार्ग की कठिनाइयों की परवाह न कर दूर देशों में जाते थे। कालकाचार्य, कुमारजीव, दीपंकर, अतिशा आदि के उदाहरण हमारे सामने हैं। पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया, चीन, तिब्बत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक देशों में इन विद्वानों ने भारतीय संस्कृति का संदेश फैलाने में बड़ा कार्य किया। उनका सन्देश समस्त जीवों के कल्याण हेतु था । दीपंकर के बारे में प्रसिद्ध है कि जब उन्हें ज्ञात हुआ कि भारत पर विदेशी आक्रमणों की घटा उमड़नेवाली है तब वे तिब्बत को (जहाँ वे उस समय थे) छोड़कर भारत आये। यहाँ वे बंगाल के पाल शासक नयपाल से मिले और फिर कलुचरि-शासक लक्ष्मीकर्ण के पास गए । इन दोनों प्रमुख भारतीय शासकों को उन्होंने समझाया कि आपसी झगड़े भूलकर दोनों शासक शत्रु का पूरी तरह मुकाबला करें, जिससे देश पर विदेशी अधिकार न होने पाये। इस यात्रा में आचार्य दीपंकर को लम्बे मार्ग की अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । परन्तु राष्ट्र-हित के सामने ये सब कष्ट उनके लिए नगण्य थे।
श्रवणबेलगोल के लेखों से ज्ञात हुआ है कि वहाँ विभिन्न कालों में अनेक प्रसिद्ध विद्वान् थे। ये विद्वान् जैन-शास्त्रों के अतिरिक्त अन्य धर्मों के शास्त्रों में भी प्रवीण थे । अन्य धर्माचार्यों के साथ उनके शास्त्रार्थ होते थे, परन्तु वे कटुता और द्वेष की भावना से न होकर बौद्धिक स्तर के होते थे।
गुप्त-युग के पश्चात् भारत में बौद्ध धर्म का प्रभाव अत्यन्त सीमित क्षेत्र पर रह गया। इसमें पूर्वी भारत तथा दक्षिण कौशल एवं उड़ीसा के ही कुछ भाग थे । दूसरी ओर जैन-धर्म का व्यापक प्रसार प्रायः सम्पूर्ण देश में व्याप्त हो गया। इधर वैष्णवों, शैवों ने अपने धर्मों में अन्य विचारधाराओं के कल्याणकारी तत्त्वों को अन्तर्भुक्त कर उदा ता का परिचय दिया। मध्यकाल में उत्तर तथा दक्षिण भारत में वैष्णव तथा शैव धर्मों का प्रचार बहुत बढ़ा। जैन-धर्मावलम्बियों ने उनके उदार दृष्टिकोण के संवर्धन में योग दिया। जैनाचार्यों ने अपने धर्म के अनेक कल्याणप्रद तत्त्वों को उन धर्मों में समन्वित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किया।
__ यहाँ यह बात विचारणीय है कि भारतीय इतिहास के मध्यकाल में अनेक राजनीतिक तथा सामाजिक परिवर्तन हुए। अब वैदिक-पौराणिक धर्म ने एक नया रूप ग्रहण किया । पशु बलि वाले यज्ञ तथा तत्संबंधी जटिल क्रिया-कलाप प्रायः समाप्त
परिसंवाद-४
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