________________
११२
जैन विद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
लेकर व्यापार करने के लिए आगरा गये थे, इस समय साह बंदीदास की सहायता से इनको मोतीकटरे में किराये पर एक मकान मिल सका था ।२१ आगरा-विज्ञप्ति-पत्र में इनके नाम का भी उल्लेख है ।२२ ५. ताराचन्द्र साहू
ये आगरा के धनी श्रावक एवं व्यापारी थे ।२३ इनके अनुज कल्याणमल थे, जो खेराबाद (सीतापुर) के निवासी एवं धनी व्यापारी थे। उस समय खेराबादी कपड़ों की काफी माँग थी। संभवतः कल्याणमल जी कपड़ों का ही व्यापार करते थे, इनके बड़े भाई व्यापार को ध्यान में रखते हुए राजधानी आगरा में जा बसे थे। सेठ कल्याणमल की पुत्री के साथ कविवर बनारसीदास का विवाह हुआ था ।२४
____ताराचंद्र साहू ने बनारसीदास को, जब वे व्यापार में असफल रहे थे, आगरा में लगभग २ महीने तक अपने घर में रखा था। इन्हीं के यहाँ रहकर बनारसीदास ने धरमदास जौहरी के साथ साझे में व्यापार करना शुरु किया था ।२५ सन् १६१० के आगरा विज्ञप्ति पत्र में इनका नाम अंकित है ।२६ ६. खरगसेन
खरगसेन के पिता का नाम मूलदास था। सन् १५५१ ई० में ये नरवर (ग्वालियर) के मुगल उमराव के व्यक्तिगत मोदी थे। उनकी मृत्यु के बाद खरगसेन अपनी माता के साथ अपने ननिहाल (जौनपुर) में आकर रहने लगे। इनके नाना मदनसिंह चिनालिया जौनपुर के नामी जौहरी थे। चूंकि मदनसिंह के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने खरगसेन को पुत्र की तरह स्नेह दिया तथा व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी संदर्भ में खरगसेन जी ने बंगाल के पठान सुलतान के राज्य में दीवान धन्नाराय के अधीन चार परगनों की पोतदारी की । उनकी मृत्यु के पश्चात् आप जौनपुर लौट आये। सन् १५६९ ई. में इन्होंने आगरा आकर सुन्दरदास पीतिया नामक व्यापारी के साथ साझे में व्यापार किया ।२७ इसमें आपको काफी आय हुई।
२१. वही, पृ. ५७ । २२. डॉ. हीरानंद शास्त्री, प्राचीन विज्ञप्ति पत्र, पृ. २५ । २३. बनारसीदास, बनारसी विलास अर्द्धकथानक की समीक्षा सहित, पृ. ६२ । २४. वही, पृ. ३४ । २५. वही, पृ. ६३ । २६. प्राचीन विज्ञप्ति पत्र, पृ. २५ । २७. बनारसीविलास अर्द्धकथानक की समीक्षा सहित, पृ. ३१ 1
परिसंवाद-४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org