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जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
किया है कि प्रायः सभी गाँवों में जैन मन्दिर थे।५७ प्रभावकचरित में अणहिलपाटक स्थित कुमारविहार के उल्लेख के अतिरिक्त यह भी वर्णन है कि कुमारपाल ने अपने ३२ दाँतों के प्रतिशोधरूप ३२ विहारों का निर्माण करवाया, अणहिलपाटक के त्रिभुवनविहार में नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई, शत्रुजय पर एक जैन मन्दिर का निर्माण करवाया तथा प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों पर जैन मन्दिर बनवाये ।५८ मेरुतुंग ने तो उसे १४४० जैन मन्दिरों का निर्माणकर्ता कहा है ।५९. कुमारपाल ने शत्रुजय और गिरनार जैसे पवित्र जैन तीर्थस्थानों की यात्रा भी की थी।६° कुमारपाल द्वारा निर्मित तारंगा का अजितनाथ मन्दिर आज भी विद्यमान है। इस मन्दिर की विशालता एवं सुरुचिपूर्ण कलाशैली से भी जैनधर्म की सुदृढ़ स्थिति का संकेत मिलता है। गिरनार के नेमिनाथ मन्दिर की देवकुलिकाएँ, सरोत्रा का बावनध्वज जिनालय और भद्रेश्वर का जैन मन्दिर भी इसी समय निर्मित हुए हैं।
कुमारपाल के बाद उसका पुत्र अजयपाल गुजरात का शासक हुआ जो एक कट्टर शैव था। उसने न केवल जैनों को यातनाएँ दीं अपितु उनके मन्दिर भी तोड़वा डाले ।६१ अजयपाल की इन विनाशकारी प्रवृत्तियों के बावजूद जैन धर्म फूलता-फलता रहा तथा उसे वस्तुपाल, तेजपाल, जगडू आदि वणिक मन्त्रियों द्वारा पर्याप्त पोषण मिला। वणिक् मन्त्रियों में वस्तुपाल-तेजपाल के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। जैन परम्परा के अनुसार इन्होंने अनेक जैन मन्दिर बनवाए ।६२ अभिलेखीय प्रमाण से भी इसका समर्थन होता है। एक अभिलेख में उल्लेख है कि १२१९ ई. तक वस्तुपाल-तेजपाल ने शत्रुजय और अर्बुदाचल जैसे पवित्र तीर्थ स्थानों पर तथा अणहिलपुर, भृगुपुर, स्तंभनकपुर, स्तंभतीर्थ, दर्भावती, देवलक्क आदि महत्त्वपूर्ण नगरों में एक करोड़ मंदिर बनवाये तथा बहुत से पुराने मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाए ।६३ यद्यपि यह वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है परन्तु इसमें किंचित् सन्देह नहीं है कि उन्होंने अनेक मन्दिर बनवाए। वस्तुपाल-तेजपाल द्वारा निर्मित जैन मन्दिर आज भी गिरनार और आबू में दर्शनीय हैं। इन सुन्दर जैन मन्दिरों के निर्माण एवं उनके आज तक सुरक्षित रहने के कारण वस्तुपाल-तेजपाल के नाम गुजरात में आज भी बहुत आदर के साथ लिए जाते हैं। वस्तुपाल की जैन-धर्म के प्रति गहरी आस्था इस बात से भी प्रकट होती है कि उसने शत्रुजय और गिरनार की तीर्थयात्रा की तथा अणहिलपुर, स्तम्भतीर्थ और भृगुकच्छ में जैन भण्डारों की स्थापना की।
जब सन् १२४२ ई. में चौलुक्य शासन का अन्त हुआ तो शासन की बागडोर वाघेलों ने सम्भाली। वाघेलों के राजकाल में जगडूशाह ने जैन मन्दिरों का निर्माण परिसंवाद-४
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