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जैनविद्या
तेजस्विनी थी । महाकवि पुष्पदंत की तीन रचनाएँ - तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकार, णायकुमारचरिउ और जसहरचरिउ उपलब्ध हैं। यह प्रसन्नता का प्रसंग है तीनों ही ग्रंथ आधुनिक पद्धति से सुसम्पादित होकर प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत शोधालेख में पुष्पदंत विरचित ग्रन्थत्रय की साहित्यिक विवेचना हमें अभीप्सित है - तिसठिमहापुरिसगुणालंकार (त्रिषष्टिमहापुरुषगुणालंकार)
यह विशाल ग्रंथ 'महापुराण' संज्ञा से अधिक जाना जाता है । 'महापुराण' दो खण्डों में विभक्त है - आदिपुराण और उत्तरपुराण । ये दोनों खण्ड अलग-अलग ग्रंथ रूप में मिलते हैं। इन दोनों खण्डों में त्रेसठ शलाका पुरुषों के चरित शब्दित हैं। प्रथम खण्ड में आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का तथा दूसरे खण्ड में शेष तेईस तीर्थंकरों का और उनके समयुगीन अन्य महापुरुषों - नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र आदि की जीवन-गाथा गुम्फित है । उत्तरपुराण में पद्मपुराण (रामायण) और हरिवंशपुराण ( महाभारत ) भी सम्मिलित हैं। ये पृथक्-पृथक् ग्रंथ रूप में भी प्राप्त हैं। आदिपुराण में अस्सी तथा उत्तरपुराण में बियालीस सन्धियाँ (सर्ग) हैं। इनका श्लोक परिमाण बीस हजार है। इस विस्तीर्ण ग्रंथ की सर्जना में कवि पुष्पदंत को लगभग छह वर्ष लगे थे। इस महान् ग्रंथ के लिए कवि पुष्पदंत ने स्वयं कहा है कि इसमें सब कुछ है और जो इसमें नहीं है वह कहीं नहीं है -
पत्र प्राकृतलक्षणानि सकला नीति: स्थितिच्छन्दसामर्थालंकृतयो रसाश्च विविधास्तत्त्वार्थनिर्णीतयः ॥ किंचान्यदिहास्ति जैनचरिते नान्यत्र तद्विद्यते ।
द्वावती भरतेशपुष्पदशनी सिद्ध ययोरीदृशम् ।। 'महापुराण' में पुष्पदंत ने लोकभाषा का व्यवहार किया है जिसमें वाग्धाराओं, लोकोक्तियों और सुन्दर सुभाषितों के विनियोग से विशेष सौन्दर्य आ गया है। ध्वन्यात्मक भाषा का कवित्वपूर्ण उदाहरण द्रष्टव्य है -
होइ गिरि स्थलु णिविसे सम-थलु । किरण किरण किर कद्दमियउँ जलु ॥ किरण किरण किर संचूरिउ वणु।
किरण किरण धूलि जायउ तण ॥ ___ कवि ने जहाँ पर भी वर्णनों में प्राचीन परम्परा का आश्रय लिया है वहाँ शैली अलंकृत और दुरूह है। जहाँ पर परम्परा को छोड़ स्वतंत्र शैली का प्रयोग हुआ है वहाँ भाषा अधिक स्पष्ट, सरल और प्रवाहमयी है। 'महापुराण' के प्रारम्भ में परम्परागत सज्जन-प्रशंसा एवं दुर्जन-निंदा के साथ-साथ कवि पुष्पदंत ने अपनी विनम्रता कालिदास की भांति 'क्व चाल्पविषया मतिः' कह कर व्यक्त की है। ग्रंथ में तिरसठ महापुरुष वणित होने से कथानक पर्याप्त विस्तृत एवं विशृंखलित है तथापि बीच-बीच में नगरों और जामों आदि के भव्य वर्णन से रोचकता का समायोजन उल्लेखनीय है।३० रस-योजना के दृष्टिकोण से काव्य में वीर, शृंगार और शांत रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है।