Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 141
________________ जैनविद्या का स्वयंभू विशेषांक : विद्वानों की दृष्टि में (1) श्री श्रीरंजनसूरिदेव, एम०ए० (प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी), स्वर्णपदकप्राप्त, पीएच०डी०, उपनिदेशक (शोध) एवं सम्पादक "परिषद् पत्रिका" - बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना "विशेषांक का प्रस्तवन, सामग्री और सज्जा की दृष्टि से अतिशय उत्तम है। यह विशेषांक अपभ्रंश साहित्य के अध्येताओं के लिए अवश्य ही सन्दर्भ ग्रन्थ की मूल्यवत्ता आयत्त करता है । मेरी हार्दिक बधाई ले।" (2) डॉ. गजानन नरसिंह साठे, एम०ए० (मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी) पीएच०डी०, बी०टी०, साहित्यरत्न, पूना - _ "अंक बहुत ही सुन्दर है । लेखों में विविधता है। "स्वयंभूदेव" के साहित्य का अध्ययन करनेवालों को यह परम उपयुक्त सिद्ध होगा।" (3) डॉ. कैलाशचन्द्र भाटिया, प्रोफेसर-हिन्दी तथा प्रादेशिक भाषाएं, लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी "स्वयंभू का प्रारम्भिक हिन्दी के सन्दर्भ में विशेष महत्त्व है। स्वयंभू-काव्य के विविध पक्षों पर आपने जो सामग्री जुटाई वह प्रशंसनीय है। सभी लेख पठनीय हैं । सांजसज्जा आकर्षक है । ऐसे अभिनंदनीय प्रयास के लिए जैनविद्या संस्थान को मंगलकामनाएं।" (4) श्री यशपाल जैन, मंत्री - सस्ता साहित्य मण्डल एवं सम्पादक - "जीवन साहित्य", नई दिल्ली.."विशेषांक बहुत सुन्दर निकला है। उसमें आपने बड़ी ही ज्ञानवर्धक, खोजपूर्ण तथा उपयोगी सामग्री का समावेश किया है। ऐसे लोकोपयोगी विशेषांक के लिए हार्दिक बधाई।"

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