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जैनविद्या
( 21 ) पं० विष्णुकान्त शुक्ल, प्रध्यक्ष हिन्दी विभाग, जे० वी० जैन कॉलेज, सहारनपुर - "स्वयंभू अपभ्रंश भाषा के अंगुलिगणनागरणनीय कवियों में होते हुए भी अनेक साहित्यप्रेमियों एवं जिज्ञासुत्रों के लिये अपरिचितप्राय: हैं । स्वयंभू कवि पर शोधपूर्ण सामग्री का संयोजन एवं संकलन कर स्वयंभू विशेषांक को प्रकाशित कर संस्थान ने एक प्रशंसनीय शुभारम्भ किया है ।
विशेषांक में स्वयंभू से संबंधित प्रत्येक विषय पर अधिकारी विद्वानों ने लेख लिखे हैं। इन सभी से कवि के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्वपरक परिचय से पाठक सहज ही परिचित हो जाता है । सभी लेख / निबंध स्वयं में पूर्ण हैं । विशेषांक को स्वयंभू पर लघु विश्वकोष कहा जाय तो कुछ प्रसंगत नहीं होगा ।"
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(22) डॉ० वि० बा० पेंढारकर, प्राचार्य एवं अध्यक्ष - हिन्दी विभाग, शास० स्नातकोत्तर म० वि०, गुना ( म० प्र० )
"महाकवि के मूल्यवान् प्रदेय को उसकी समस्त गुणवत्ता के साथ विशेषांक प्रस्तुत करता है । विशेषतः महाकवि की पउमचरिउ कृति का विविध पक्षों को उद्घाटित करनेवाला प्राकलन एवं मूल्यांकन स्तरीय विश्लेषणात्मक एवं मौलिकता से युक्त है । स्वयंभू के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व का संतुलित परन्तु विशद वर्णन एवं विश्लेषण इस विशेषांक की निजी विशेषता है ।"
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(23) श्री. सुबोधकुमार जैन, सचिव श्री देवकुमार जैन प्राच्य शोध संस्थान, श्री जैन सिद्धान्त भवन, धारा
"यह पहला अंक आपने बहुत अच्छा निकाला है । विशेषांकरूप में निकाल कर और भी अच्छा किया है। हमारी सलाह है कि आप इसी विशेषता को कायम रखें। इसका अपना अलग ही महत्त्व रहेगा ।"
(24) श्री सत्यंधरकुमारजी सेठी, उज्जैन -
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" जैन समाज में यह प्रथम प्रयास है जबकि अपभ्रंश भाषा के महान् विद्वान् एवं महाकवि स्वयंभू द्वारा रचित "पउमचरिउ" ग्रन्थ पर विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रकाश डाला गया है ।
महावीर क्षेत्र कमेटी का यह प्रयास वास्तव में स्तुत्य है ।"
( 25 ) डॉ० हरीन्द्रभूषण, निदेशक - श्रनेकान्त शोधपीठ तथा मा० ज० भोसीकर, संचालक - बाहुबली विद्यापीठ, बाहुबली (कोल्हापुर )
" स्वयंभूदेव और उनके साहित्य के सम्बन्ध में जो महत्त्वपूर्ण सामग्री एकत्र की गई है उससे पत्रिका का रूप स्वयंभूदेव पर लिखे गये एक स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसा हो गया है ।
वस्तुतः जैनविद्या विशेषांक के सभी लेख प्रायः हैं जिनसे महाकवि के व्यक्तित्व, कर्तृत्व, काव्य-सौन्दर्य, साहित्यकारों के जीवन पर प्रकाश पड़ता है ।"
संक्षिप्त होते हुए भी महत्त्वपूर्ण पात्रों के चरित्र एवं तत्कालीन