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जैनविद्या
- मूलग्रंथ संस्कृत-पद्य-निबद्ध है । साथ में हिन्दी अर्थ व भावार्थ भी है । ग्रन्थ में पंडित सदासुखजी, द्यानतरायजी, सूरचन्दजी कृत समाधिमरण पाठ और भावना भी दे दी गई है जो मूलग्रंथ के विषय से सम्बद्ध होने के कारण पुस्तक की उपयोगिता में वृद्धि ही करती है । पुस्तक मानव को मृत्यु की वास्तविकता का परिचय करा उससे भयमुक्त हो मृत्यु समय समाधि धारण कर उसे महोत्सव में परिवर्तित करने की प्रेरणा देती है ।
5. अनित्य भावना : अनुवादक - स्व० पं० जुगलकिशोर मुख्तार । प्रकाशक - शान्तादेवी चैरीटेबल ट्रस्ट, हल्दियां हाउस, जौहरी बाजार, जयपुर । पृ० सं० 42 । द्वितीय संस्करण । साइज 20°x30°/16 । निःशुल्क ।
प्रस्तुत कृति आचार्य पद्मनन्दि की संस्कृत कृति “अनित्यपंचाशत्" का मूलसहित स्व० पं० जुगलकिशोर कृत हिन्दी अनुवाद है। हिन्दी, संस्कृत से अनभिज्ञ पाठकों के लिए ' संस्कृत पद्यों का अंग्रेजी में रूपान्तरण भी है। कृति में संसार एवं उसकी भोगोपभोग सम्पदाओं की अनित्यता का सुन्दर चित्रण कर पाठक को राग से वैराग्य की ओर उन्मुख करने का प्रयत्न किया गया है जिससे कि वह सांसारिक फन्दों से अपने को छुड़ा आत्मकल्याण कर शिवसुख प्राप्त कर सके। प्रकाशन छपाई-सफाई आदि सभी दृष्टियों से । उपादेय है।
जैनविद्या (शोध-पत्रिका)
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जयपुर-302015