SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 142 जैनविद्या - मूलग्रंथ संस्कृत-पद्य-निबद्ध है । साथ में हिन्दी अर्थ व भावार्थ भी है । ग्रन्थ में पंडित सदासुखजी, द्यानतरायजी, सूरचन्दजी कृत समाधिमरण पाठ और भावना भी दे दी गई है जो मूलग्रंथ के विषय से सम्बद्ध होने के कारण पुस्तक की उपयोगिता में वृद्धि ही करती है । पुस्तक मानव को मृत्यु की वास्तविकता का परिचय करा उससे भयमुक्त हो मृत्यु समय समाधि धारण कर उसे महोत्सव में परिवर्तित करने की प्रेरणा देती है । 5. अनित्य भावना : अनुवादक - स्व० पं० जुगलकिशोर मुख्तार । प्रकाशक - शान्तादेवी चैरीटेबल ट्रस्ट, हल्दियां हाउस, जौहरी बाजार, जयपुर । पृ० सं० 42 । द्वितीय संस्करण । साइज 20°x30°/16 । निःशुल्क । प्रस्तुत कृति आचार्य पद्मनन्दि की संस्कृत कृति “अनित्यपंचाशत्" का मूलसहित स्व० पं० जुगलकिशोर कृत हिन्दी अनुवाद है। हिन्दी, संस्कृत से अनभिज्ञ पाठकों के लिए ' संस्कृत पद्यों का अंग्रेजी में रूपान्तरण भी है। कृति में संसार एवं उसकी भोगोपभोग सम्पदाओं की अनित्यता का सुन्दर चित्रण कर पाठक को राग से वैराग्य की ओर उन्मुख करने का प्रयत्न किया गया है जिससे कि वह सांसारिक फन्दों से अपने को छुड़ा आत्मकल्याण कर शिवसुख प्राप्त कर सके। प्रकाशन छपाई-सफाई आदि सभी दृष्टियों से । उपादेय है। जैनविद्या (शोध-पत्रिका) सूचनाएं पत्रिका सामान्यतः वर्ष में दो बार प्रकाशित होगी। 2. पत्रिका में शोध-खोज, अध्ययन-अनुसंधान सम्बन्धी मौलिक अप्रकाशित रचनाओं को ही स्थान मिलेगा। 3. रचनाएं जिस रूप में प्राप्त होंगी उन्हें प्रायः उसी रूप में प्रकाशित किया जायगा । स्वभावतः तथ्यों की प्रामाणिकता आदि का उत्तरदायित्व रचनाकार का रहेगा। 4. रचनाएं कागज के एक ओर कम से कम 3 सेमी. का हाशिया छोड़कर सुवाच्य अक्षरों में लिखी अथवा टाइप की हुई होनी चाहिए। 5. अन्य अध्ययन अनुसंधान में रत संस्थानों की गतिविधियों का भी परिचय प्रकाशित किया जा सकेगा। 6. समीक्षार्थ पुस्तकों की तीन-तीन प्रतियाँ आना आवश्यक है। 7. रचनाएँ भेजने एवं अन्य सब प्रकार के पत्र-व्यवहार के लिए पता : प्रधान सम्पादक जनविद्या B-20, गणेश मार्ग, बापूनगर जयपुर-302015
SR No.524752
Book TitleJain Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain & Others
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year1985
Total Pages152
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vidya, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy