Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 143
________________ जनविद्या 137 (9) श्री रामसिंह तोमर, शांतिनिकेतन • "जैनविद्या" का पहला अंक प्रत्येक दृष्टि से आकर्षक है। मैं स्वयं विश्वभारती (त्रैमासिक) पत्रिका का सम्पादक हूँ। कोई भी अच्छी पत्रिका दृष्टि में आती है तो प्रसन्नता होती है। बिहारी का दोहा है – “ज्यों बडरी अंखिया निरखी आँखिनि को सुख होत"- किसी की बड़ी आँखें दिखती हैं तो आँखों को बड़ा सुख होता। एक सम्पादक को अच्छी पत्रिका देखकर सुख मिलता है । आपकी पत्रिका उन्नति करे, चिरायु हो। (10) महन्त श्री बजरंगदास स्वामी, प्राचार्य - दादू प्राचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर "अपभ्रंश भाषा के प्रख्यात महाकवि स्वयंभू से सम्बद्ध सम्पूर्ण जानकारी एक कलेवर में प्राप्त कर हार्दिक प्रसन्नता हुई । पत्रिका के लेख महाकवि के व्यक्तित्व, काव्यसौन्दर्य एवं तत्कालीन देश आदि विषयों का शोधपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत करते हैं। अतएव यह विशेषांक शोधार्थियों एवं सामान्य अध्येताओं के लिए परमोपयोगी एवं संग्रहणीय है।" • (11) श्री उदयचन्द्र जैन, सर्वदर्शनाचार्य, वाराणसी "इस विशेषांक में एक ही स्थान पर स्वयंभू का व्यक्तित्व, विद्वत्ता, काव्यकला आदि पर अच्छा प्रकाश डाला गया है । उच्चकोटि के 16 विद्वानों के लेख इस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं जो सभी पठनीय हैं। यथार्थ में इस विशेषांक को पढ़ने से स्वयंभू के विषय में सम्पूर्ण जानकारी एक ही स्थान पर मिल जाती है । इस विशेषांक का बाह्यरूप जितना आकर्षक है अन्तरंग उससे भी अधिक भव्य एवं मनोहर है । अतएव यह विशेषांक पठनीय होने के साथ ही संग्रहणीय भी है।" (12) डॉ० एम० डी० बसन्तराज, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष - जैनोलॉजी एवं प्राकृत्स, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर “The magazine as a Svayambhū Višesāåka is well designed and the articles in it on Svayambhū are very Valuable... (13) दैनिक हिन्दुस्तान, साप्ताहिक संस्करण, रविवार, 24 जून, '84 ___"विशेषांक में स्वयंभू के व्यक्तित्व तथा कर्तृत्व के संबंध में शोधपरक जानकारी जुटाई गई है जो स्वतन्त्र तथा तुलनात्मक दोनों प्रकार के अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।" . (14) पं० रतनलालजी कटारिया, केकड़ी - ___ "जैनविद्या" का प्रथम अंक मिला । पढ़कर तबियत प्रसन्न हो गई। कागज, छपाई बहुत ही उच्चकोटि की है, प्रमेय भी उच्चकोटि का है । धन्यवाद !" (15) डॉ० पवनकुमार जैन, भाषाविज्ञान विभाग, सागर विश्वविद्यालय, सागर - ___.."संयोजित सामग्री के लिए सम्पादक मण्डल बधाई का पात्र है। स्वयंभू कौन थे, उनका साहित्य जगत् में क्या अभूतपूर्व योगदान रहा है ? इत्यादि प्रश्नों के संबंध में

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