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जैन विद्या
गुणभद्र की रामकथा की अपेक्षा रविषेण की रामकथा अधिक प्रचलित है । दोनों धाराओं में पर्याप्त वैषम्य है "
1. प्रथम धारा के अनुसार राजा दशरथ मूलतः अयोध्या के ही राजा थे जबकि द्वितीय धारा में राजा दशरथ के बनारस से अयोध्या जाने का प्रसंग है ।
2. प्रथम धारा में दशरथ की चार रानियों से चार पुत्रों के जन्म का उल्लेख है और द्वितीय धारा में गुणभद्र ने तीन रानियों का तथा पुष्पदंत ने चार रानियों का उल्लेख किया है ।
3. प्रथम धारा में भरत को केकयी का पुत्र बताया है किन्तु द्वितीय धारा में लक्ष्मण को केकयी का पुत्र बताया गया है ।
4. प्रथम धारा में सीता जनक की पुत्री है जबकि द्वितीय धारा में सीता रावण की पुत्री है जिसका पालन जनक करते हैं ।
5. प्रथमधारा में स्वयंवर व धनुष चढ़ाने की शर्त द्वारा राम विवाह का प्रसंग है और द्वितीय धारा में यज्ञ-रक्षा द्वारा ।
6. प्रथम धारा में केकयी के वरदान द्वारा भरत को राज्य व राम वनवास की कथा है परन्तु द्वितीय धारा में वनवास का प्रसंग नहीं है क्योंकि इसमें लक्ष्मण को केकयी का पुत्र बताया गया है अतः इस तथ्यात्मक भिन्नता के कारण राम वनवास व भरत को राज्य आदि का प्रश्न ही नहीं उठता ।
7. प्रथम धारा में वनवासकाल में सीता का अपहरण होता है और सीताहरण का कारण चन्द्रनखा बनती है जबकि द्वितीय धारा में नारद के बहकाने पर रावरण बनारस जाकर सीता का अपहरण करता है और चन्द्रनखा ( सूर्पणखा ) को अपनी दूती बनाता है ।
8. प्रथम धारा में सीता के अपहरण के समय राजा दशरथ संन्यास धारण कर चुके होते हैं जबकि द्वितीय धारा में स्वप्न द्वारा पूर्वाभास के आधार पर दशरथ ही सीता के अपहरण का तथ्योद्घाटन करते हैं ।
9. प्रथम धारा में लोकापवाद के कारण सीता - निर्वासन का प्रसंग है और उसी काल में लवण और अंकुश दो पुत्रों के जन्म का वर्णन है । द्वितीय धारा में सीता - निर्वासन का वर्णन नहीं है, बनारस में ही विजयरामादि आठ पुत्रों के होने का उल्लेख है ।
10. प्रथम धारा में सीता की अग्निपरीक्षा की घटना का समावेश है जबकि द्वितीय धारा में इस प्रसंग का पूर्णत: प्रभाव है ।
11. प्रथम धारा में लक्ष्मण की मृत्यु का कारण एक असत्य समाचार है तथा राम द्वारा लक्ष्मण के शव को छः मास तक लेकर घूमने का वर्णन है परन्तु द्वितीय धारा में किसी असाध्य रोग के कारण लक्ष्मण की मृत्यु होती है और राम उनकी मृत्यु के बाद स्थिरचित्त रहकर वैराग्य धारण करते हैं ।
12. प्रथम धारा में भरत का पर्याप्त महत्त्व दृष्टिगत होता है जबकि द्वितीय धारा में उनका कोई विशेष महत्त्व नहीं दिखाई देता ।