Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 108
________________ 102 जैनविद्या होने के कारण मंदिरों में शास्त्र भण्डार बनाये गये और उनमें ग्रंथ लिखवा कर रखवाये गये । आज भी भगवान् के दर्शन के पश्चात् मंदिर में बैठकर शास्त्र-स्वाध्याय की परिपाटी प्रचलित है और उसी से जैनवाङ् मय सुरक्षित है । वैसे तो जैन साधु एवं श्रावक विद्वानों ने सभी भाषाओं में साहित्य निर्माण किया है किन्तु प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी उनके साहित्य-निर्माण की प्रमुख भाषाएं रही हैं । राजस्थान के शास्त्र भण्डारों की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अपभ्रंश साहित्य को सुरक्षित रखने में मानी जानी चाहिये क्योंकि अपभ्रंश की 80 प्रतिशत पाण्डुलिपियाँ तो राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में ही मिलती हैं। अकेले आमेर शास्त्र भण्डार में जिसे अब श्रीमहावीरजी स्थानांतरित कर दिया गया है, अपभ्रंश की 60 से अधिक पाण्डुलिपियाँ हैं जिनका प्रशस्ति-संग्रह में उल्लेख किया गया है। इनमें से कुछ पाण्डुलिपियाँ तो अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। अपभ्रश के कवियों में महाकवि पुष्पदंत की रचनाओं को राजस्थान में सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त है । श्रीमहावीरजी क्षेत्र द्वारा प्रकाशित राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रंथ-सूची के 5 भागों, प्रशस्ति संग्रह तथा नागौर के ग्रंथ भंडार की सूची के अध्ययन से पता चलता है कि अकेले पुष्पदंत की रचनाओं की 75 से भी अधिक पाण्डुलिपियाँ राजस्थान के ग्रंथ भंडारों में संगृहीत हैं। उनमें अधिकांश पाण्डुलिपियाँ सम्पादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । आमेर शास्त्र भंडार में संगृहीत उत्तरपुराण की संवत् 1391 की पाण्डुलिपि सबसे अधिक प्राचीन सिद्ध होती है। 15वीं, 16वीं, 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में लिपिबद्ध पाण्डुलिपियाँ राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में विपुल संख्या में सुरक्षित हैं। महाकवि पुष्पदंत की अब तक तीन रचनाएँ उपलब्ध हैं, जिनमें उनने हृदय के सम्पूर्ण भावों को उण्डेल कर रख दिया है । 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' की दृष्टि से तीनों ही रचनाएं अपभ्रंश साहित्य-जगत् को उनकी अद्वितीय भेंट हैं। इन कृतियों में महापुराण एक महाकाव्य है जबकि "णायकुमारचरिउ' एवं 'जसहरचरिउ' खण्ड-काव्य हैं । महापुराण कहीं-कहीं आदिपुराण एवं उत्तरपुराण के नाम से अलग-अलग भी मिलता है। राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में यद्यपि पुष्पदंत की कृतियों की विपुल पाण्डुलिपियाँ मिलती हैं लेकिन प्रस्तुत लेख में हम उन्हीं पाण्डुलिपियों का परिचय दे रहे हैं जो प्राचीन, शुद्ध एवं सम्पादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । महापुराण - इसे 'वेसठशलाकामहापुरुष' वर्णन भी कहते हैं । इसके आदिपुराण तथा उत्तरपुराण दो खण्ड हैं । पहिले खंड में ऋषभदेव का पूरा वर्णन तथा 'उत्तरपुराण में शेष 23 तीर्थंकरों का वर्णन है। महापुराण विशालकाय उत्तम ग्रंथ है जिसकी प्रतियाँ निम्न भंडारों में उपलब्ध हैं -

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