Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 132
________________ 126 जनविद्या 123. (क) माइ वापु कुलु (ख) कुल 124. (क) ना तिसु राउ न रोसु (ख) णउ तेसु रोसु ण रावं 125. (क) समक्तिदृष्टि जाणिए, सदगुरु के उपदेस (ख) सम्यदिट्ठि हि जाणियइ, सदगुरु करई सभाउ 126. यह छंद संख्या 27 (क) प्रति में नहीं है। 127. (ख) शरोवरहं 128. (ख) करई पवेसु 129. (ख) पिवई 130. (ख) स्वामिहि 131. (क) मह सोधे खणि खहि, जे चक्कवइ व होइ। । न्यानवलेन जीतेवि मुनि, स्यौपुरु नियडौ सोइ ॥ . (ख) महि साधहि रमणिहिं रमहि, रमहिं जे चक्काहि हवेइ। . णाणवलेन जिणेव मुणि, सिवपुरि णियेडा होहि ।।28। 132. (क) प्रति में निम्न दोहा यहाँ है जो (ख) और (ग) प्रति में संख्या 30 का छंद है। कुंभस्थलि जो मदि द्र, केसरि करै प्राहारु। । प्रेम राहि न भूलिए, रहिए निरहंकार 133. (ख) सिक्खु सुसिक्खु 134. (ख) भणइं 135. (ख) परमानंद 136. (ख) परमज्योति 137. (ख) णिमलु 138. (क) प्रति में यह छंद 29 छंद के पश्चात् है । 139. (क) इंदी मनहि वि छाहिए (ख) इंदिय मण विछोहियऊ 140. (ख) चेतणु 141. (क) कर (ख) करइ 142. (ख) प्रवेसु 143. (क) उदौ करते वारिए 144. (क) सूत जाणहि देसु (ख) मुणउ जाण ण देउ 145. छंद 29 के पश्चात् (क) प्रति में निम्न छंद है जो (ख) और (ग) प्रतियो में 28 संख्या का छंद है - सिखु सुण सदगुरु भणे, परमानंद सहाउ । परमजोति त्सु उल्हस, रहिए सहज सुभाइ । 146. (ख) गयकूभत्थलि 147. (ख) करई

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