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जैनविद्या
2. चारों अनुयोगों के मूल ग्रंथ और उनके अनुवाद हिन्दी, अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओं में प्रकाशित करना ।
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3. जैन पुराण, दर्शन, न्याय आदि के संक्षिप्त जनोपयोगी संस्करण तैयार करना ।
4. जैन दर्शन, श्राचार, इतिहास, कला, साहित्य आदि पर मौलिक पुस्तकें तैयार करना । 5. देश में जैन भण्डारों की पाण्डुलिपियों को व्यवस्थित कराना तथा उनकी सूचियाँ बनाना, उनके संग्रहण एवं संरक्षरण की व्यवस्था करना ।
6. दुर्लभ पुस्तकों एवं महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की पाण्डुलिपियों की माइक्रोफिल्म बनवा कर संस्थान में उपलब्ध कराना ।
7. देश - विदेश के विद्वानों को अभीष्ट पाण्डुलिपियों की फोटोस्टेट, जीरोक्स आदि प्रतियाँ उनकी आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराना ।
8. प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि भाषात्रों के जैन ग्रंथों के कोश तथा प्राकृत ग्रंथों की अनुक्रमणिका तैयार करना ।
9. जैन विषयों से सम्बन्धित शोध-प्रबन्धों को प्रकाशित करना और जैन विषयों पर शोध करनेवाले छात्रों को सुविधाएं प्राप्त कराना ।
10. जैन कला संग्रहालय की स्थापना करना ।
11. समय-समय पर जैनविद्या पर संगोष्ठियाँ, भाषण, समारोह प्रायोजित करना व
कराना ।
12. विदेशों में जैन विद्या के केन्द्रों को स्थापित कराना ।
13. विश्वविद्यालयों में जैनविद्या के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था में आवश्यक योग देना ।
14. प्राचीन जैन कवियों के आध्यात्मिक तथा भक्तिपरक भजनों के रेकार्ड एवं टेप तैयार
कराना ।
15, जैनधर्म सम्बन्धी भाषणों और चर्चाओं के टेप तैयार कराना ।
16. जैन तीर्थों की फिल्मों का संग्रहण एवं प्रदर्शन करना ।
17. श्राकाशवाणी तथा दूरदर्शन से जैन संस्कृति के प्रसार की व्यवस्था कराना ।
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु संस्थान में निम्न सात विभागों की स्थापना की योजना बनाई गई है -
(1) पुस्तकालय विभाग :
इसमें मुद्रित एवं हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहीत किये जा रहे हैं । जो हस्तलिखित ग्रंथ प्राप्त न हो सकेंगे उनकी फोटोस्टेट प्रतियाँ कराई जायेंगी । इस विभाग में माइक्रोफिल्मिंग केन्द्र भी खोलने की योजना है।
वर्तमान में इस विभाग में 13,000 के लगभग विभिन्न विषयों के मुद्रित ग्रंथ उपलब्ध हैं ।