Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 138
________________ 132 जैनविद्या पाण्डुलिपि विभाग में हस्तलिखित ग्रंथों की संख्या 3500 से भी अधिक है जिनमें 700 के लगभग गुटके हैं। उनमें पूजा, स्तोत्र, पद, विधान, चरित, रासा आदि विभिन्न भाषाओं की रचनाएं संगृहीत हैं जिनकी संख्या हजारों में है। भण्डार में प्राचीनतम पाण्डुलिपि 10वीं शताब्दी ई० में होनेवाले अपभ्रंश भाषा के महाकवि पुष्पदंत द्वारा रचित उत्तरपुराण की है जिसकी प्रतिलिपि मुहम्मदशाह तुगलक के राज्यकाल में योगिनीपुर (दिल्ली) में विद्या और हेमराज ने वि० सं० 1391 में कराई थी। प्राकृत भाषा का संस्कृत टीका सहित ग्रंथ 'क्रियाकलाप' संवत् 1399 में प्रतिलिपीकृत है। नागरी लिपि में लिखे ग्रंथों के अतिरिक्त एक ग्रंथ बंगला, दो ग्रंथ कन्नड़ लिपि में तथा कुछ गुजराती भाषा की नागरी लिपि में लिखित रचनाएँ भी हैं । कुछ सचित्र प्रतियां भी हैं। अभी सर्वेक्षण कार्य चालू है । विद्वान् इस कार्य को कर रहे हैं। (2) शोष विभागः इस विभाग में जैन पुराण, दर्शन, न्याय, इतिहास, कला आदि से सम्बन्धित विषयों पर शोध-कार्य एवं अन्य धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन की व्यवस्था है। प्राचीन ग्रंथों एवं पाण्डुलिपियों का सम्पादन कार्य भी चालू है । वर्तमान में विद्वान् जैनपुराण कोश की तैयारी कर रहे हैं । इस कार्य के लिए महापुराण, हरिवंशपुराण, पाण्डवपुराण, पद्मपुराण एवं वर्द्ध मानपुराण, इन पांच पुराणों को लिया गया है। इनमें आई अवान्तर कथाओं को भी छाँटा गया है एवं सूक्तियों का भी चयन व हिन्दी अनुवाद किया जा रहा है। "षट्खण्डागम कोश" की तैयारी का कार्य भी प्रगति पर है । अपभ्रश के पाद्य कवि स्वयंभू पर भी शोध-कार्य हो रहा है । _ संस्थान द्वारा "जैनविद्या" नामक एक अर्द्धवार्षिक शोध-पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारम्भ किया गया है एवं प्रतिवर्ष संगोष्ठियों एवं व्याख्यानों का आयोजन किया जाता है। शोध के क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक व्यक्तियों को आवश्यक सुविधाएँ भी यह विभाग प्रदान करता है एवं जो व्यक्ति श्रीमहावीरजी में आकर शोध-कार्य करना चाहते हैं, उनके रहने तथा प्रातिथ्य की उचित व्यवस्था भी इस विभाग द्वारा की जाती है । (3) जनोपयोगी साहित्य निर्माण विभाग : इस विभाग द्वारा बालकों और वयस्कों के लिए ऐसे रोचक साहित्य का निर्माण कराया जायगा जिससे उनमें धर्म और दर्शन के प्रति रुचि जागृत हो सके। (4) कला विभाग ...इस विभाग में स्थापत्य, मूर्ति एवं चित्रकला के ऐसे नमूनों का संग्रह होगा जो जैन संस्कृति के कलात्मक पक्ष को समझने में महत्त्वपूर्ण होगा।

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