________________
100
जैनविद्या
दिग्विजय के लिए जाती हुई भरत की सेना के कितने ही चित्र हैं। कोई चित्र पर्वत के समीप सेना के पड़ाव का है, किसी चित्र में सेना को गंगा पार करती हुई दिखाया गया है । सभी चित्रकला की दृष्टि से ही नहीं अन्य दृष्टियों से भी महत्त्वपूर्ण हैं । सैनिक घोड़ों पर सवार हैं, हाथियों पर श्रारूढ़ हैं, कुछ घोड़ागाड़ियों में बैठे हैं तथा कुछ पैदल भी प्रयाण कर रहे हैं, उनके एक हाथ में ढाल व एक हाथ में तलवार है । यह प्रयाण रात्रि में हो रहा है, आकाश में पूर्ण चन्द्रमा चमक रहा है ।
आदिनाथ पुराण में इतने अधिक चित्र हैं कि उनके द्वारा पुराण का पूरा कथानक समझ में आ जाता है । किसी-किसी पत्र पर तो तीन-तीन चित्र हैं लेकिन अधिकांश पत्रों के दोनों ओर चित्र अंकित हैं। प्रत्येक सर्ग की समाप्ति पर तीर्थंकर प्रतिमा का चित्र अंकित है | चित्रों के मुख्य आकर्षण आदिनाथ, बाहुबली एवं भरत चक्रवर्ती हैं । पुराण की छोटी से छोटी घटना को चित्रांकित किया गया है । इसप्रकार श्रादिपुराण की प्रस्तुत पाण्डुलिपि चित्रकला की दृष्टि से एक असाधारण पाण्डुलिपि है जिसका जितना अधिक एवं सूक्ष्म अध्ययन किया जावेगा, कला एवं संस्कृति के उतने ही नये आयाम उजागर किये जा सकेंगे ।
सा विज्जा जा सयरु वि गियइ, सं रज्जु जम्मि बुहयणु जिया । ते बुह जे बुहहं रण मच्छरिय, ते मित्त रण जे विहरंतरिय ||
अर्थ-विद्या वही है जो सब कुछ जान लेती है, राज्य वही है जिसमें विद्वान् जीवित रहते हैं । पण्डित वे ही हैं जो पण्डितों से ईर्ष्या नहीं करते, मित्र वे ही हैं जो संकट में दूर नहीं होते ।
- महापुराण : 19.3.6-7