Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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114
वउ-उ- 3 6 संजम सीलु 37 गुणु,
9
एक रंग जारगइ परमकला,
40
केई 12 केस लुचावह, 13 ater fबंदु रग भावह,
तिणिकालु बाहिर वसह, 6 सहहि परीसहं भारु 7 । दंसणरणाराहं बाहिरउ, 48 मारिसे ए जमु कालु ॥
5
बहु
श्राणंदा रे ! भमियह बहु संसारु ॥ 8 ॥
सहइ महव्वय 8 - भारु । भमियइ + 1 संसार ॥
केई +4 सिर जटभारु । किम पावहिं भवपारु 15 आणंदा रे ! किम पावहिं भवपारु ॥ 9 ॥
11
60
2
पक्खि मासि भोयणु कहिं, 51 पाणिउ गासु निरासु । प्रप्पा भाइ जारहि, तिह गहि + जमपुरिवासु ॥
3
4
जो गरु सिद्धहं मोक्खु महापुरु णीयडउ,
श्राणंदा रे ! मारिसे ए जमु कालु ॥10॥
8
9
बाहिरि लिंग धरेवि मुणि 56 तूसह 57 मूढ भिंतु । अप्पा एक्कु ग भावह, सिवपुरि गाहि भिंतु ॥ श्रागंदा रे ! सिवपुरि खाहि भिंतु ||12||
जिरणवरु पुज्जई गुरु थुरगई, सत्यहं माणु करई । प्पा देव रग चितवई, ते गर जमपुरि जाई ॥
जिम वैसांवर काठ महं, तिम देहहं जीउ' वसई,
2
श्राणंदा रे ! तिह गहि जमपुरिवासु ॥11॥
जैनविद्या
झाइयउ
श्रागंदा रे! ते गर जमपुरि जाई ||13|
श्ररि खिपंत झार्योह।
1
भवदुहु पारिग रग देहि ] ॥
आणंदा रे ! भवदुहु पाणि ग देहि ॥14॥
for a 2 faण भरगइ, मारगु तियरग प्रक्खियउ, 65
तारिणम्मलु न होइ । अप्पा" करइ सु होइ 7 ॥ श्राणंदा रे ! अप्पा करइ सु होइ ||15||
6 3
8 कुसुमहं परिमलु 70 होइ71 । 73 विरलड 74
बुझइ कोइ 75 ।।
प्रागंदा रे ! विरलउ बुझइ कोइ ||16||
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