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महाकवि पुष्पदंत की रचनाओं
की राजस्थान में लोकप्रियता
-पं० अनूपचन्द न्यायतीर्थ
राजस्थान की भूमि जिस प्रकार रणबांकुरे शूरवीरों की जननी रही है उसी प्रकार साहित्य, संस्कृति एवं कला की भी प्रसूता मानी जाती है । एक ओर यहाँ के वीरों ने रणभूमि में प्राण निछावर कर अपनी संस्कृति, देश और राष्ट्र की आन-बान की रक्षा की है तो दूसरी ओर यहाँ के प्रबुद्ध मनीषियों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी और हिन्दी भाषा में अपार साहित्य रच कर उसकी सुरक्षा में पूर्ण योग दिया है। यही कारण है कि हाथ से ग्रंथ लिखने के उस युग में भी पाण्डुलिपियों की कमी नहीं रही। विगत दो हजार वर्षों से शास्त्र लिखने और लिखाने में जैन साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है और इसी कारण आज भी देश के विभिन्न प्रदेशों में अनेक शास्त्र-भण्डार हैं और उनमें लाखों पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित हैं ।
जैनाचार्यों द्वारा किये गये दान के चार भेदों में ज्ञानदान (शास्त्रदान) भी एक भेद है । दान की यह अक्षुण्णधारा अब तक अविरलरूप से बहती चली आ रही है। जितना पुण्य मंदिर बनवाने, मूर्ति बनाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराने में बतलाया गया है उससे अधिक शास्त्र लिखवाकर विराजमान करवाने में माना गया है ।
___हमारे यहाँ देव-शास्त्र-गुरु की नित्य पूजा की जाती है जिसमें तीनों का समान स्थान है । शास्त्र को पूर्ण सम्मान के साथ रखा जाता है । सदैव से जैनों में स्वाध्याय की परिपाटी