Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 93
________________ जैनविद्या 87 राजा दशरथ ने केकयी को एक वर दिया था जिसे उसने सुयोग्य अवसर के लिए सुरक्षित करा लिया। राजा जनक के भामण्डल व सीता दो सन्तानें थीं। किसी पूर्वशत्रुता के कारण भामण्डल का बालपन में ही अपहरण हो गया । युवा होने पर एक दिन नारद ने उसे सीता का चित्र दिखाया जिसे देखकर वह सीता पर मोहित हो गया और उसे प्राप्त करने के लिए मिथिला पर आक्रमण करने को तत्पर हो उठा पर मिथिला-दर्शन से उसे अतीत का स्मरण हो गया जिससे उसे ज्ञात हुआ कि सीता तो उसकी सहोदरा है, तब उसने अपनी दुर्भावना का नाश किया। ____ राजा जनक ने सीता-स्वयंवर का आयोजन किया जिसमें वज्रावर्त धनुष को चढ़ाने की शर्त रखी गई। दशरथपुत्र राम इस शर्त को पूर्ण करने में सफल हुए और सीता से उनका विवाह हो गया। कुछ समय पश्चात् दशरथ ने राम का राज्याभिषेक कर स्वयं संन्यास धारण करना चाहा। केकयी ने अपने पूर्वस्वीकृत वरपूर्ति के लिए यही अवसर उपयुक्त जानकर राजा से अपने पुत्र भरत के लिए राज्य व राम के लिए वनवास मांगा। तदनुरूप राम, लक्ष्मण व सीता वनवास हेतु दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। भरत द्वारा भर्त्सना किये जाने पर केकयी को अपने दुष्कृत्य पर पश्चात्ताप हुआ और वह भरत के साथ राम को वापस लाने के लिए वन में गयी पर राम ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। राजा दशरथ ने विरक्त होकर संन्यास धारण कर लिया। वनवास में लक्ष्मण से अनायास ही रावण की बहिन चन्द्रनखा के पुत्र का वध हो गया । चन्द्रनखा पुत्रवध का बदला लेने आई और लक्ष्मण को देखकर उस पर मोहित हो गयी पर लक्ष्मण ने उसकी अवहेलना की। अपमान की तपन से तप्त चन्द्रनखा ने अपने पति खरदूषण व भाई रावण को राम-लक्ष्मण के विरुद्ध बहकाकर उत्तेजित किया और युद्ध के लिए प्रेरित किया । तत्पश्चात् रावण ने छल से सीता का अपहरण किया जिसके परिणामस्वरूप भीषण युद्ध हुआ। युद्ध में राम ने रावण का वध किया और लंका पर विजय प्राप्त की। वनवास की अवधि समाप्त कर राम अयोध्या लौटे। रावणगृहनिवास के कारण लोकनिन्दा व लांछनवश सीता को निर्वासित कर दिया गया। निर्वासन-काल में सीता ने लवण व अंकुश दो पुत्रों को जन्म दिया जिन्होंने दिग्विजय-यात्रा के समय अपने पिता राम से युद्ध किया तब राम को ज्ञात हुआ कि ये मेरे ही पुत्र हैं । सीता को अग्निपरीक्षा के द्वारा अपना सतीत्व सिद्ध करना पड़ा पर सीता के सतीत्व के प्रभाव से वह अग्निकुण्ड शीतल सरोवर में परिवर्तित हो गया । राम ने सीता से राजप्रासाद में चलने का अनुरोध किया जिसे सीता ने अस्वीकार कर दिया और दीक्षा धारणकर आर्यिकापद ग्रहण किया। राम की मृत्यु का असत्य समाचार सुनने पर भ्रातृवियोग के कारण लक्ष्मण का निधन हो गया। राम इस घटना से बहुत दुःखी हुए और छह मास तक लक्ष्मण का शव लेकर घूमते रहे। फिर संबोधि प्राप्त कर जिनदीक्षा धारण की और तपश्चर्यापूर्वक कर्मकलंक नष्ट कर मुक्त हो गये।

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