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जैन विद्या
विवेकयुक्त थी, कोरी भावात्मक नहीं, अतः उसमें भाव का ज्वार नहीं था । भाव था किन्तु उत्तप्त लपलपाती लहरें नहीं थीं। इसके अतिरिक्त जैन भक्त कवियों पर परम्परानुगतता ने भी अंकुश का काम किया। प्राकृत और संस्कृत के जैन ग्रंथों में तीर्थंकर के गर्भ और जन्म का जैसा विवेचन था, वैसा ही अपभ्रंश और हिन्दी की जैन रचनात्रों में उपलब्ध होता है । मौलिकता का अवसर कम था, फिर भी उसमें एक ऐसा आकर्षण था, जो कभी कम नहीं हुआ । भाषा के भिन्न होने मात्र से आकर्षण कम नहीं हो जाता । इसके साथ ही, परम्परागत होने पर भी भाषा के रचयिता ने कुछ-न-कुछ नवोन्मेष तो किया ही है । यद्यपि भूधरदास के पार्श्वपुराण में तीर्थंकर पार्श्वनाथ के गर्म और जन्म का पूर्वानुगत वर्णन है, फिर भी उसकी मौलिकता से इन्कार नहीं किया जा सकता । इसी भांति पुष्पदंत के महापुराण के आदिपर्व में ऋषभदेव के गर्म और जन्मोत्सवों के भावोन्मेष से पाठक विभोर होता ही है । उसका अपना आकर्षण है - एक भिन्न कोटि का, जो सूर में नहीं मिलता ।
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" गायकुमारचरिउ" पुष्पदंत की एक महत्त्वपूर्ण रचना है । उसमें नागकुमार के चरित्र पर एक उत्कृष्ट कोटि का सरस प्रबन्ध-काव्य निबद्ध है । महापुरुष हो अथवा दिव्यपुरुष, जब वह मां के उदर में आता है, तो मां स्वप्न अवश्य देखती है । इसे कथारूढ़ ही माना जा सकता है । नाग की मां पृथ्वीदेवी ने पांच स्वप्न देखे - उन्मत्त हाथी, वज्र समान नखों की कोटि से हाथियों को मारनेवाला हरि अर्थात् सिंह, मगरों से चलायमान भयंकर रत्नाकर, शशि - दिनकर और विकसित कमलों से युक्त सरोवर । उस समय योगी मुनि पिहिताश्रव से इस स्वप्न का फल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे “मारिणरिणहिययहरु सिसु कुसुमसरु तुम्हहॅ दीहि मि होसइ ।" 10 अर्थात मानिनियों के हृदय को हरनेवाला कामदेव जैसा पुत्र होगा ।
माता के उदर में जब पुत्र आया, तो देवी का मुख कमल पीला दिखाई देने लगा, मानो वह पुत्र के यश के प्रसार से धवल हो गया हो। अपने नीचे गिरने के भय से भी होकर उसके स्तन मुख, दुर्जन मुख के समान काले पड़ गये । यहाँ महापुराण के तीर्थंकर ऋषभदेव जैसा गर्भोत्सव का विवेचन नहीं है । नागकुमार तीर्थंकर नहीं थे शायद इसी कारण ।
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नागकुमार के जन्म और जन्मोत्सव का वर्णन काव्य - सौंदर्य से युक्त है । कवि ने लिखा है - जिसप्रकार पुरा कवि (वाल्मीकि) की बुद्धि से काव्यार्थ उत्पन्न हुआ तथा देवकी से दामोदर और शिवदेवी से पार्श्व जिनेन्द्र, उसी प्रकार पृथ्वी महादेवी से नागकुमार उत्पन्न हुए
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दूसरे स्थान पर कवि का कथन है - पुत्र कामदेव का अवतार था । उसके जन्म के समय दशों दिशाओं के मुख निर्मल हो गये, वन फल-फूल फूल उठे, प्रत्येक उपवन में वसन्त काल प्रगट हुआ, जन-जन में सन्तोष बढ़ा, नरन्तर में नाटक रस का संचार हुआ तथा घर-घर में जय का नगाड़ा बज उठा । ऋषियों का हृदय भी राग से रंजित हो उठा । सम्पूर्ण नगर