Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 88
________________ जैविद्या उसके योग्य हूँ (68.103)। अतः उसने उस बलहीन राम से सीता को बलात् छीन लाने का संकल्प किया। उसके इस प्रकार नीतिविहीन निर्णय को जानकर सभासद् नानाविध समझाते रहे पर दुनिश्चयी रावण को उनकी सलाह मान्य न हुई। अन्त में मंत्री मारीच के अनुरोध पर सीता का मानस जांचने हेतु अपनी बहिन सूर्पणखा को दूती बनाकर भेजा और उससे किसी भी प्रकार सीता को अपने प्रति आसक्त करवाने का आग्रह किया (68.124)। सूर्पणखा अविलम्ब आकाशमार्ग से वाराणसी के चित्रकूट वन में पहुँची और अवसर देखकर वृद्धा का रूप धरकर वन में विहार कर रही सीता के सम्मुख प्रगट हुई। वह अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु सीता से चाटुकारितापूर्वक वार्तालाप करने लगी परन्तु सीता के विद्वत्तापूर्ण, दृढ़ धार्मिक आस्थायुक्त वचन सुनकर सूर्पणखा ने समझ लिया कि सीता के मन को चलायमान करना सर्वथा असंभव है। उसने लौटकर रावण से यह तथ्य प्रकट किया, यह जानकर रावण खिन्न हो उठा (68.182)। वह मारीच को साथ ले, विमान में आरूढ़ हो चित्रकूट वन में पहुँच गया । वहाँ रावण की आज्ञा से मारीच मणिमय मृगशावक का रूप धर सीता के सम्मुख प्रकट हुआ (68.197)। उस मनोहारी शावक पर मोहित हो सीता ने राम से उसे प्राप्त करने का आग्रह किया। राम उस मृगशावक को पकड़ने के लिए गए। पीछे से रावण राम का छद्मरूप बनाकर पाया और सीता से कहा कि तुम्हारा वांछित मृग प्रासाद में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, चलो प्रासाद में चलें, यह कहकर रावण ने उसे विमान में बैठा लिया और लंका ले गया। वहाँ अपने यथार्थरूप में प्रत्यावर्तित होकर उसने अपना मन्तव्य प्रकट किया। सीता उसकी यथार्थता व दूरभिप्राय जानकर दुःख से मूच्छित हो गई। रावण ने सीता का स्पर्श नहीं किया क्योंकि शीलवती परस्त्री के स्पर्श से उसकी आकाशगामिनी विद्या नष्ट हो जाती। चित्रकूट वन में वह मायावी मृगशावक काफी समय तक राम के हाथ नहीं आया और फिर उछलकर आकाश में चला गया (68.201-2)। मृग का अनुगमन करते हुए संध्या हो गई। परिवारजन राम व सीता को खोजने लगे पर उस सघनवन में एकाकी राम ही मिले, सीता नहीं । सीता के बारे में कोई सूचना प्राप्त न होने पर राम मूच्छित हो गये (68.238-42)। अयोध्या में राजा दशरथ को एक दुःस्वप्न द्वारा ज्ञात हुआ कि रावण ने सीता का हरण कर लिया है । उन्होंने दूत के साथ यह समाचार बनारस भेजा (68.248)। जनक, भरत, शत्रुघ्न, सभी राम को धैर्य बंधाने आये। सभी ने मिलकर सीता को रावण के चंगुल से निकालने की युक्तियों पर विचार-विमर्श किया और राम के शरणागत दो विद्याधर कुमार सुग्रीव व अणुमान् में से अणुमान् को सीता की खबर लाने हेतु भेजा (68.287-89)। अणुमान् ने लंका पहुँचकर भ्रमर का रूप बनाया और सीता को खोजने लगा। नन्दनवन में सीता को देखकर पुनः रूप परिवर्तन कर वानर का रूप धर सीता के सम्मुख गया और राम का संदेश देकर उन्हें आश्वस्त किया कि वह राम का ही दूत है कोई मायावी छलिया नहीं । लौटकर राम को सीता का वृत्तांत सुनाया।

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