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जैन विद्या
अयोध्या का राज्य संभालते हैं । अयोध्या में ही उनकी तीसरी रानी से भरत तथा चतुर्थ रानी से शत्रुघ्न का जन्म होता है ( 69.14 ) । यहाँ पुष्पदंत के कथानक में आचार्य गुणभद्र के कथानक से किंचित् असमानता दृष्टिगत होती है । गुणभद्र ने दशरथ की तीन रानियों का उल्लेख किया है और बताया है कि तीसरी रानी ही भरत व शत्रुघ्न की जन्मदात्री थी, पुष्पदंत ने चार रानियों का उल्लेख किया है और उनके अनुसार भरत व शत्रुघ्न का जन्म पृथक्-पृथक् रानियों से होता है । पर यहाँ दोनों में एक समानता भी है, दोनों ही कवि मात्र दो ही रानियों के नाम स्पष्ट करते हैं, शेष के नहीं ।
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अपभ्रंश महापुराण में भी मिथिला के राजा जनक यज्ञ- रक्षार्थं राम-लक्ष्मण को आमंत्रित करते हैं और अपनी पालिता पुत्री सीता का राम के साथ विवाह करते हैं (69.15) । इस महापुराण के अनुसार सीता अपने पूर्व भव में अलकापुरी के राजा की पुत्री मणिवती के रूप में थी जबकि गुणभद्र के अनुसार वह स्थालकनगर की जन्म से निर्वासन तक का शेष घटनाक्रम दोनों महापुराणों में समानरूप से प्राप्त होता है (70.6-7) I
राजपुत्री थी। सीता के
पुष्पदंत की रामकथा में उल्लेख है कि बालिका सीता के परित्याग के समय मंजूषा में नवजात बालिका व धन के साथ एक पत्र भी रखा गया जिसमें लिखा था कि यह बाला रावण की पुत्री है और इसका नाम सीता है । यहाँ सहज जिज्ञासा होती है कि जब पितृगृह में ही उस बालिका का "सीता" अभिधान हो गया था तो स्वाभाविक है कि रावण भी उस नाम से परिचित रहा ही होगा और जब नारद उसके समक्ष सीता के सौन्दर्य का वर्णन करता है तब तथा तत्रोत्तर अन्य घटनाओं के दौरान क्या रावण को एक बार भी
परित्यक्ता/निर्वासिता पुत्री "सीता" का स्मरण / ध्यान नहीं आया ? क्या उसे यह आभास नहीं हुआ कि मेरे भी "सीता" नाम की पुत्री थी जो मेरे विनाश का कारण बताई गई थी, संभव है यह "सीता" वही हो अतः मैं इसका अपहरण न करू' अथवा अपहरण करने के बाद भी लौटा दूं ?
मंजूषा से सीता की प्राप्ति, जनक द्वारा उसका पालन-पोषण, यज्ञ की निर्विघ्न समाप्ति पर दशरथपुत्र राम के साथ उसका विवाह आदि घटनाएँ गुणभद्र की रामकथा के समान ही हैं (70.9-13 ) ।
राम द्वारा वाराणसी के राज्य को पुनः हस्तगत करना, युद्धप्रिय नारद द्वारा सीता के सौन्दर्य वर्णन को सुनकर रावण का भ्रमित होना भी समानतायुक्त है (70.16-17 ) । इसी प्रकार रावण का सीता पर प्रासक्त हो जाना, नानाविध समझाये जाने पर भी अपना दुराग्रह न छोड़ना, अपनी बहन चन्द्रनखा को सीता की मनोदशा परखने व अपने प्रति आसक्त करवाने हेतु बनारस भेजना, उसका अपने उद्देश्य में असफल होकर लौट आना आदि तथ्य भी समानता लिए हुए हैं परन्तु गुणभद्र कृत उत्तरपुराण में रावण की बहिन का नाम सूर्पणखा बताया गया है और पुष्पदंत कृत महापुराण में चन्द्रनखा ।
तदनन्तर रावण मारीच के साथ वाराणसी जाते हैं । मारीच मायावी मृगशावक के रूप में प्रकट होता है, स्वयं रावण राम का रूप बनाकर आता है और छल से सीता का