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जनविद्या
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बिम्बों का वर्गीकरण
आलोचकों ने विविध आयामों एवं आधारों पर काव्य-बिम्ब का वर्गीकरण किया है । बिम्बों में ऐन्द्रिय अाधार प्रमुख होता है। अतः ऐन्द्रिय आधार पर बिम्ब के पांच भेद किये गये हैं - दृश्य, श्रव्य, स्पृश्य, घ्राणिक और रस या आस्वाद्य ।
महापुराण का बिम्ब-विधान
___ पुष्पदंत कृत "महापुराण" अपभ्रंश का एक सर्वोत्कृष्ट काव्य ग्रंथ ही नहीं है वरन् एक ऐसी महनीय कृति है जिसकी विशालता, उदात्तता, कमनीयता एवं गम्भीरता ने सम्पूर्ण अपभ्रंश साहित्य को गौरव से मंडित किया है। इसमें कवि ने अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा से पुराण, दर्शन, काव्य, इतिहास आदि का एक ऐसा संश्लिष्ट रूप प्रस्तुत किया है जो मानव की सौन्दर्यात्मक उपलब्धियों का अक्षय भंडार बन गया है। मनुष्य का प्रात्म-विकास एवं आत्मविस्तार ही महापुराण का लक्ष्य है और इसकी पुष्टि के लिए कवि का सारा प्रयास है । महापुराण का दर्शन जैन-दर्शन है और इसलिए कवि वैराग्य को जीवन का चरम लक्ष्य मानकर भी जड़ता, गतिहीनता एवं किंकर्तव्यविमूढ़ता को प्रश्रय नहीं देता । कवि की जिजीविषा शक्ति प्रबल है। वह विलास को ही विनाश मानता है और आत्मसम्मान को दिव्यजीवन । आत्मसम्मान की विभुता का उसने उदात्त चित्र खींचा है। अपने अपरिग्रही और स्वाभिमानी व्यक्तित्व को रूपक अलंकार से पुष्ट चाक्षुषबिम्ब द्वारा स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है -
जगं रम्भं हम्मं दीवो चन्दविम्बं । धरित्ती पल्लंको दो वि हत्था सुवत्थं ॥ पियाणिद्दा पिच्चं कव्वकीला विरणोश्रो ।
प्रदीपत्तं चित्तं ईसरो पुप्फदन्तो ॥ "पुष्पदंत ईश्वर है, सुन्दर संसार उसका घर है, चन्द्रबिम्ब दीपक है धरती पलंग है, और दो हाथ वस्त्र हैं, नित्य आने वाली नींद प्रिया है, काव्य-क्रीड़ा विनोद है, चित्त अदीन है।"
कवि का बिम्ब-विधान अनेक रूपों में व्यक्त हुआ है उसने अपने बिम्बों को या तो जीवन के व्यापक अनुभवों से ग्रहण किया है या प्रकृति के विभिन्न उपादानों से । अपनी जीवन सम्बन्धी अनुभूतियों एवं अन्तःकरण के संवेगों की उसने प्रकृति के उपादानों के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। प्रकृति के बिम्बों द्वारा ही उन्होंने चरित्रों की उदात्तता को मूर्तिमत्ता प्रदान की है तथा भावों और संवेदनाओं को प्रेषणीय बनाया है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं :
दृश्य या चाक्षुष बिम्ब
यह बिम्ब प्राकृतिमूलक होता है, अतः इसका आधार मूर्त होता है। "महापुराण" में चाक्षुष-बिम्ब का प्रयोग सर्वाधिक मात्रा में हुआ है। यह मसृण और कठोर दो रूपों में