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जैनविद्या
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प्रास्वाध-बिम्ब
इस प्रकार के बिम्ब-चित्रण में कवि ने अलंकारों का विशेषतः उत्प्रेक्षा अलंकार का सहारा लिया है। लाल किरणोंवाले गोल सूर्य के सम्बन्ध में कवि की उत्प्रेक्षा है - मानो आकाशरूपी वृक्ष से नवदल गिर गया हो या दिशारूपी युवती ने मानो लाल फल खा लिया हो।
णं गवदल गह रूक्खहु ल्हसियउ, रत्तहलु व ढिसितरुरिणइ उसियड ॥
35.12 महाकवि कालीदास ने रघुवंश महाकाव्य में कीचड़ में लथपथ सूअरों एवं भैसों का बड़ा हृदयहारी चित्रांकन किया है। पुष्पदंत ने भी वन-वर्णन के क्रम में अंकुर खाते हुए शूकरों एवं पक्षियों के चों-चों से आहत होकर गिरे हुए पके आमों के गुच्छों के लिए दौड़ते हुए वानरों का बड़ा आकर्षक आस्वाद्य-बिम्ब उपस्थित किया है।
किडीखद्धकंवं, यासीणकंदं । सरे णं सवंतं, महावंसवंतं सवेल्ली पियालं, पुलिंदी पियालं । विरणीतंकुरोह, विचितंकुरोहं । अलीपीयवासं, फरिणदाहिवासं ॥
21.6.8
.. उस जंगल में जहाँ सूअरों के द्वारा अंकुर खाये जा रहे हैं, मेघ शिखरों से लगे हैं जो स्वरों से आवाज कर रहे हैं, जो बड़े-बड़े बाँसों से युक्त हैं, जो लताओं और प्रियाल लताओं से सहित हैं, जो शबरियों के लिए प्रिय हैं, जिसमें अंकुर निकल रहे हैं, जिसमें विचित्र अंकुरों का समूह है, जिसमें भ्रमर गंध का पान कर रहे हैं। मिश्र-बिम्ब
जब कोई बिम्ब एक से अधिक इन्द्रियों को तृप्त करता है तो उसे मिश्र-बिम्ब कहते हैं। बसन्त-वर्णन के प्रसंग में कवि ने चाक्षुष, स्पर्श एवं श्रव्य-बिम्ब का मिश्रित प्रयोग किया है।
छुडु मायंद रुक्खु कंटइयउ, महुलच्छिइ प्रालिगिवि लइयउ । छुड़ चंपयतरू अंकूरंचिउ, रणं कामुउ हरिसे रोमांचिउ । छुडु कंकेल्लि कि पि कोरइयउ, रणं वम्मह चित्तार रइयउ । छुडु मंदारसाहि पल्लवियउ, चलदलु णं महुणा पंच्च वियउ । छुडु जायउ गमेरू कलियालउ, मतचोरकीररावालउ । छुडु काणणि पप्फुल्लु पलासउ, पहियहं लग्गउ विरहहुयासउ । छुडु फुल्लिउ मल्लिय फुल्लोहउ, रमणीर्याण पसरिउ रइलोहउ ।
28.14.1-7