________________
जनविद्या
29
arora की दृष्टि से महाकवि पुष्पदन्त का महत्त्व निःसंदेह अपभ्रंश-प्रबंधकाव्यधारा के कवियों में महाकवि स्वयम्भूदेव से कदापि कम नहीं है, यद्यपि " महापुराण" में कथा की सूत्रबद्धता एवं काव्योत्कर्ष अधिक नहीं आ सकता । इस संदर्भ में डॉ० देवेन्द्रकुमार जैन का कथन उल्लेखनीय है - " यथार्थ में पुराण- काव्य की शैली में कथा के विकास का उतना महत्व नहीं होता, जितना कि पुराण कहने का । कवि का काम काव्य को पुट देकर उसे संवेदनीय बनाना है । अतः कथा अधिक गतिशील नहीं हो पाती । " 12
काव्य-कला की दृष्टि से महाकाव्योचित शैली एवं रूढ़ियों का सटीक प्रयोग पुष्पदन्त ने किया है । " महापुराण" में दो प्रकार की रूढ़ियों का प्रयोग हम पाते हैं - (1) काव्यविषयक रूढ़ियाँ तथा (2) पौराणिक अथवा धर्मविषयक रूढ़ियाँ ।
प्रयोग " महापुराण" में है, यथा - " मंगलाचरण", का प्रकाशन", "सज्जन-स्तुति" एवं "दुर्जन- निन्दा ", कथा कहने की " श्रोता - वक्ता शैली" आदि ।
काव्यगत रूढ़ियों में प्रायः संस्कृत प्रबंध काव्यों में प्रयुक्त सभी प्रमुख रूढ़ियों का "ग्रंथ रचना का लक्ष्य", "आत्म - लघुता " स्तुति - गान", "आत्म-परिचय" एवं
दूसरी ओर पौराणिक रूढ़ियों को भी महाकवि ने विशेष रूप से स्थान दिया है । इनमें मुख्य ये हैं - सृष्टि-वर्णन, धर्म-निरूपण एवं प्रतिपादन, दार्शनिक खण्डन - मण्डन, लोकविभाग, अलौकिक वर्णनों की योजना, पूर्वभवों का वर्णन एवं स्वप्न - दर्शन आदि । स्मरणीय है कि पुराणकार के लिए इन काव्य - रूढ़ियों का प्रयोग शास्त्रीय दृष्टि से करना अनिवार्य माना गया है । एक उदाहरण यहाँ पर्याप्त होगा जिसमें "श्रात्म- लघुता का प्रकाशन " दर्शनीय है -
"उ हउं होमि, विक्खणु रग मुगमि लक्खण छन्तु वेसि ग वियारामि । जइ विरइय जय वंदेहि प्रासि मुरिंगदहि सा कह केम समारणमि ।। " 13
इस सन्दर्भ में उल्लेख्य है कि "अभिमानमेरु" विरुद धारण करनेवाला महाकवि पुष्पदन्त स्वयं को काव्यत्व से सर्वथा हीन कहता है । अपभ्रंश कवियों में यह परिपाटी विशिष्ट कही जा सकती है । स्वयम्भूदेव कहते हैं -
" बहुयरण सयंभु पई विगवड, महं सरिसउ प्रष्णु नहीं कुकइ ।"14
महाकवि पुष्पदन्त जैनमत में दीक्षित होकर "जिनभक्ति" में ही जीवन की सार्वभौम सार्थकता मानते हैं, तथापि उनका दृष्टिकोण व्यापक एवं उदार रहा है । उनकी धार्मिक • सहिष्णुता एवं समन्वयवादी उदार दृष्टि का परिचय हमें तब मिलता है जब " महापुराण " में वे सभी देवताओं की श्रद्धाभाव से अभ्यर्थना करते हैं -