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जैनविद्या
"महापुराण" में "बोड्ड तथा डोड्ड" जैसे कुछ कन्नड़ शब्द खोजकर पुष्पदंत को कर्नाटक का कहा है, लेकिन अभी तक भी कोई बात प्रमाणपुष्ट नहीं है ।
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महाकवि पुष्पदंत भी स्वयंभूदेव की ही भाँति राष्ट्रकूट राज्य के श्राश्रयप्राप्त कवि रहे हैं । " महापुराण" के अनेक उल्लेखों से यह सिद्ध है कि पुष्पदंत राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज तृतीय के समकालीन रहे हैं और इन्हीं के अमात्य भरत के प्रश्रय 'रहकर पुष्पदंत ने " महापुराण” की रचना की थी । कवि की अन्य दो कृतियाँ " गायकुमार चरिउ" तथा “जसहरचरिउ” प्रश्रयदाता श्रमात्य भरत के सुपुत्र " नन्न" ( गण ) के आश्रय में लिखी गईं । *
" महापुराण" में कवि पुष्पदंत ने अपने पूर्ववर्ती कवियों में चतुर्मुख, स्वयंभूदेव, श्रीहर्ष, बाणभट्ट, ईशान, द्रोण, धवल एवं रुद्रट आदि का उल्लेख किया है । ( द्रष्टव्य - महापुराण, 1.9, 38.5 ) इस आधार पर पुष्पदंत का समय रुद्रट के समय 800-850 ईसवी से बाद का ही होना चाहिये ।
"महापुराण" के साक्ष्य पर कवि पुष्पदंत के स्वभाव तथा अन्य विशेषताओं को रेखांकित किया जा सकता है । उल्लेख है कि कवि का एक नाम " खण्ड" या "खंडु" भी था - " जो विहिरणा गिम्मउ कव्वपि तं रिगसुणे वि सो संचलिउ खंड ।"5
afa को मिले हुए विरुद " अभिमानमेरु” ( महापुराण 1.3) "अभिमानचिह्न", “काव्यरत्नाकर”, “कविकुलतिलक" ( महापुराण 1.8 ), "सरस्वतीनिलय " ( जसहरचरिउ, 1.8 ) तथा " कव्वपिसल्ल" आदि निश्चय ही कवि पुष्पदंत की काव्यप्रतिभा एवं लोकप्रियता की व्यापक स्वीकृति के प्रमाण हैं ।
निःसन्देह, महाकवि पुष्पदंत स्वाभिमानी, उग्र एवं एकान्तप्रिय रहे होंगे, यही " अभिमानमेरु" से व्यंजित होता है । पुष्पदंत "सरस्वतीनिलय" और "सरस्वतीविलासी " के रूप में युगों तक याद किये जाते रहेंगे । स्वाभिमान छोड़कर झुकना उनकी प्रकृति के विरुद्ध था । "महापुराण" के एक प्रसंग में कवि के शब्द हैं -
"तं सुरिवि भरणइ महिमारण मेरु, वर खज्जइ गिरिकंदरि कसेरु |
उ दुज्जरण भउँहावं कियाई, दीसंतु कलुस भावं कियाई ॥ वर गरवरु धवलच्छि होहु म कुच्छिहे भरउ सो गिम्हणिग्गमे । खल कुच्छिय पहुवयरणई भिउडियरणयरगई म गिहालउ सूरुग्गने ।। " 8
अर्थात् - " गिरिकन्दराओं में घास खाकर रहना अच्छा, लेकिन दुर्जनों की टेढ़ी भौंह देखना अच्छा नहीं । माँ की कोख से पैदा होते ही मौत अच्छी, किन्तु किसी राजा की टेढ़ी निगाह देखना और दुर्वचन सहना अच्छा नहीं ।" इस उद्धरण से कवि का स्वाभिमानी स्वभाव स्पष्ट हो जाता है ।
महाकवि पुष्पदंत की काव्यकला
अपभ्रंश के "अभिमानमेरु " महाकवि पुष्पदंत की तीन प्रमुख रचनाएँ आज उपलब्ध हैं जिनसे उनकी काव्यकला का सम्यक् विवेचन सम्भव है । उनकी महनीय कृति