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जैनविद्या
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भव
भौं
भाषा-संबंधी विशेषताएं 1. ध्वनि परिवर्तन संबंधी विशेषताएं
ध्वनि परिवर्तन संबंधी विशेषताएं सामान्यतः अपभ्रंश की हैं जिसके आदि रूपों के दर्शन हमको “पालि" काल से होने लगते हैं, फिर भी पुष्पदंत का महत्त्व इस दृष्टि से विशेष है कि इस काल तक आते-आते रूपों में स्थिरता आ चुकी थी। 1.1 स्वर-संबंधी
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ आदि स्वर सामान्यतः प्राप्त होते हैं । 'ऐ' तथा 'औ' के स्थान पर क्रमशः 'अई' तथा 'अउ' इस काल में मिलते हैं - ऐ - अइ
भैरव - - भइरव विश्रमै
विसमइ
भवइ औ- अउ
भउं भौंहा
भउंहा औखलिहिं - अउहलम्पि, उक्खलु रूप भी
___ मिलता है। स्वरों में प्रायः "ऋ" का लोप हो गया है, अधिकांशतः इसके स्थान पर "ई" मौर कहीं-कहीं "अ", "उ" आदि स्वर भी विकसित हो गये हैं - - ऋ - इ हृदय : - हियय
घृतपूर
घियपूर ऋ - अ
श्रृंखला
संखला
तृष्ण ____ ऋ - उ ऋतु - उडु
धृष्ट - धुछ कहीं-कहीं "ऋ" के स्थान पर "रि" भी विकसित हुआ है -
ऋक्ष - रिक्ख स्वरों में समीकरण तथा विषमीकरण की प्रवृत्ति पायी जाती है - विषमीकरण
पुरुष - पुरिस 1.2 व्यंजन-संबंधी 1.2.1 श, ष के स्थान पर स शशि
ससि शीर्ष
सीसु विदुष
विउस
ऋ - अ
तह