Book Title: Jain Vidya 02
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 58
________________ जैनविद्या इनके द्वारा ही रस के आस्वाद्य और प्रास्वाद रूप में निखार आता है और कवि की व्युत्पत्ति-मूलक संस्कृति और संस्कारों में उभार ।1। महापुराणुकार "उक्त विषया वस्तूत्प्रेक्षा-माला" के रूप में एक विराट् तथा स्वत:संभवी मूर्तामूर्त एवं श्लेष गुणोपेत गतिशील बिंब का संयोजन तब करता है, जब वह अपने एक प्रमुख पात्र की सौंदर्य-वृद्धि के स्वभाव की असामान्य वृत्ति के वर्णन की त्वरा प्रदर्शित करता है - वड्ढइ परमेसरि दिव्वदेह, णं बीयायंबहु तरिणय रेह । णं ललिय महाकइपयपउत्ति, णं मयरणभावविष्णागजुत्ति । णं गुणसमग्ग सोहगयत्ति, गं पारित्वविरयणसमत्ति । लायण्णवत्त णं जलहिवेल, सुरहिय णं चंपयकुसुममाल । थिर सुहव णं सप्पुरिसकित्ति, बहुलक्खण णं वायरणवित्ति। म. 70.9.5-10 अपभ्रंश के "वाईसर" कवि ने "प्रश्नोत्तर" एवं "ललित” से पुष्ट तथा “भारती" वृत्ति से गर्भित "दीपक" के रूप में एक स्वतःसंभवी संश्लिष्ट नीति बिंब का विधान तब, किया है जब वह नारी के अन्तर्बाह्य वैषम्य के विश्लेषण में प्रवृत्त हुअा है - तं णिसुरिणवि दहवयणे वुच्चइ, अवसु वि वसि किज्जइ जं रुच्चइ । कि विसभइयइ फणिमणि मुच्चइ, अलसहु सिरि दूरेण पवच्चइ । सुहिसयपत्तणु पुरिसपहुत्तणु गिरिमणिणत्तणु सइहि सयत्तणु। दूरयरत्यु सुणंतहं चंगउं, पासि असेसु वि दरिसियभंगउं । म. 71.21.6-9 अन्यत्र उसने "प्रश्नोत्तर" से तथा "विषयौचित्य" से विशिष्ट "प्रतिवस्तूपमामाला" के रूप में स्वतः-संभवी एक सुन्दर एवं विराट् बिंब का निर्माण तब किया है, जब वह अपने एक पात्र की महत्ता के प्राकलन में अग्रसर हुआ है - कि किज्जइ दीवउ तुच्छछवि, जइ अंधयार गिट्ठवइ रवि। किं किज्जइ हरिणु अधीरमइ, जइ लम्भइ सीहकिसोर पइ । कि किज्जइ वाइसु जइ गरुल, सुपसण्णु होइ बहुबाहुबल । किं किन्जइ खरू जइ दुद्धरहु, पाविज्जइ कंधर सिंधुरहु । किं किज्जइ पिप्पलु सलसलिउ, जइ वीसइ सुरतरुवर फलिउ। :: किं किज्जइ राहउ मुद्धि तइ, रावणमहिलत्तणु होइ जइ। म. 72.11. 1-6 "महापुराणु" में "यमक", "वर्ण-विन्यास-वक्रता", "प्रश्नोत्तर", "विचार्यमाणचमत्कार", "सूक्त कदेश-चमत्कार" और "शब्द-चमत्कार" से पुष्ट एवं “वाक्य-वैशिष्ट्य व्यंग्य” गर्भ “दृष्टान्तमाला" के रूप में एक स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक चित्र का प्राधान तब हुआ है, जब वहां प्रमुख पात्र के चित्त-सारल्य की व्यंजनर का रूप विचार किया गया है -

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