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जनविद्या
पुष्पदन्त की यह कृति साहित्य की बेजोड़ रचना के रूप में भी परवर्ती रामकाव्य एवं कृष्णकाव्य-धारा के कवियों को व्यापक रूप में प्रभावित करती रही है।
महाकवि पुष्पदंत : सामान्य परिचय
इतिहास का अभिन्न अंग बन जानेवाले अनेक विश्रुत अपभ्रंश कवि ऐसे हैं जिनके व्यक्तित्व का आकलन शोधकर्ता विद्वान् वर्षों से करने का प्रयास करते आ रहे हैं, किन्तु अन्तःसाक्ष्यों के अभाव में तथा अपूर्ण बहिःसाक्ष्यों के प्रकाश में इन कवियों के व्यक्तित्व का प्रामाणिक आकलन नहीं हो सका है। ऐसे कवियों में स्वयंभूदेव के पश्चात् प्रमुख हैं महाकवि पुष्पदंत ।
"महापुराणकार" महाकवि पुष्पदंत ने यत्र-तत्र जो उल्लेख किये हैं उनसे जो सूत्र हाथ लग सके हैं उनसे यह ज्ञात होता है कि कवि पुष्पदंत मूलत: "काश्यप गोत्रीय" ब्राह्मण थे और शैव-मतावलम्बी रहें और बाद में जैनधर्म की दीक्षा ग्रहण की। कवि के पिता का नाम केशवभट्ट तथा माता का नाम मुग्धा देवी मिलता है। रणायकुमारचरिउ (1.2) की प्रशस्ति में कवि पुष्पदंत ने अपने जन्मदाता माता-पिता की कल्याण-कामना की है। पुष्पदंत के नाम से एक "शिवमहिम्नःस्तोत्र" मिलता है, जिसे कवि की शैशवावस्था एवं जैनधर्म में दीक्षित होने से पूर्व की रचना होना स्वीकार किया जाता है। इस "स्तोत्र" में शैवमत को माननेवाले किसी "भैरव नरेन्द्र” नामक राजा की प्रशंसा है। जैन-साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान् श्री नाथूराम प्रेमी ने "शिवमहिम्नःस्तोत्र" के रचनाकार पुष्पदंत एवं “महापुराण" के रचयिता पुष्पदंत को भिन्न माना है।
आचार्यप्रवर डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अपनी पुस्तक "हिन्दी का आदिकाल" में हिन्दी के "पुष्पभाट" कवि को ही "महापुराणकार" पुष्पदंत कहा है, लेकिन यह असंगत ही है कि पुष्पभाट मात्र दोहाकार था और उसका समय पुष्पदंत से बहुत बाद का है, अतः प्राचार्य द्विवेदी का कथन निर्मूल सिद्ध होता है।
कवि ने कहीं भी अपने जन्म तथा स्थान के विषय में कोई सूचना नहीं दी, अतः अन्य स्रोतों से जानकारी ली गई है। प्रेमीजी पुष्पदंत को मूलत: "दक्षिण" का नहीं मानते जिसका आधार वे कवि की भाषा स्वीकार करते हैं - "पुष्पदंत मूल में कहाँ के रहने वाले थे, उनकी रचनाओं में इस बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता। परन्तु उनकी भाषा बतलाती है कि वे कर्नाटक या उससे और दक्षिण के द्रविड़ प्रान्तों के तो नहीं थे। क्योंकि एक तो उनकी सारी रचनाओं में कन्नड़ी और द्रविड़ भाषाओं के शब्दों का अभाव है, दूसरे अब तक अपभ्रंश भाषा का ऐसा एक भी ग्रंथ नहीं मिला है जो कर्नाटक या उसके नीचे के किसी प्रदेश का बना हुआ हो। अपभ्रंश साहित्य की रचना प्रायः गुजरात, मालवा, बरार
और उत्तर भारत में ही होती रही है। अतएव अधिक संभव यही है कि वे इसी ओर के हों।" फिलहाल, प्रेमीजी के मत को अन्तिम नहीं कहा जा सकता। डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन का कथन है – “मुझे उसमें (बरार का निवासी मानने में ) कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु इसके लिए अभी और ठोस प्रमाण की जरूरत है। क्योंकि अपभ्रंश व्यापक काव्यभाषा थी, अतः किसी भी प्रान्त का व्यक्ति उसमें रचना कर सकता था।"3 डॉ० वैद्य ने