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जैनविद्या
होने से क्या लाभ है ? सम्पत्ति मिलते ही मनुष्य सब प्रकार से नीरस हो जाता है । यहाँ तक कि वह गुणवानों से भी द्वेष करने लग जाता है। इसलिए हमारे लिए वन ही शरण है" (महापुराण 1. 4. 1-6)।
कवि ने मनुष्य की रागात्मक वृत्ति तथा प्राकृतिक रागमूलक चेतना का अच्छा परिचय दिया है। कवि के लिए गंगा नदी एक सामान्य सरिता न होकर अनुपम भेंट प्रदान करनेवाली पर्वतेश्वरी देवी है। वह अलंकार की सभी वस्तुएं सेना को भेंट में देती है (म० पुराण 15. 11. 1-10)।
इस वर्णन में महाकवि ने जहाँ गंगा की उदात्तता का परिचय दिया है, वहीं राजा के प्रताप तथा यश को भी सूचित किया है। प्रकृति के अंचल के मध्य पहुंचने पर वह महामानव का कैसे सम्मान करती है, कवि की प्रतिभा उसका कुशलता से वर्णन करती है।
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मनुष्य की सौन्दर्यानुभूति का आलम्बन प्रकृति है। अतः मनुष्य की मानसिक स्थिति, परिवेश और संयोग सम्बन्धों का वर्णन करने के लिए भी काव्य में प्रकृति-वर्णन किया जाता है। महाकवि पुष्पदंत ने विभिन्न स्थलों पर अपने काव्यों में मनुष्य के क्रिया-कलापों की तुलना प्रकृति से की है। ऐसा ही एक “महापुराण" का प्रसंग है । सीता का अपहरण करने की अभिलाषा से रावण मारीचि के साथ पुष्पक विमान में बैठकर वाराणसी आया। वहां पर रावण ने वन में एक ओर प्रकृति के जीवन को देखा और दूसरी ओर सीता के यौवन को देखा । कवि के शब्दों में :
पण बीसइ पच्चिमणीलगल सोयहि जोवन मणमीणमल । बषु दोसइ पिम्मलमरियसल, सोयहि जोवणु खिरु महुरसरु । बणु दोसइ संचरंत कमलु, सोयहि जोवणु परमुहकमलु । बण वीसइ लमिवलयाहरउ, सोयहि गोषण बिबाहरउ । वर्ष बीसह कालालिपियउ, सोयहि जोन्यणु सालिगियउ । वर्ग दोसइ प्रलयतिलयसहित, सोयहि जोवण बिहलीसहिउ । वण दोसइ फुल्लासोयतर, सोयहि जोवण परसोयया । वणु दोसइ दुग्गउ कंचुहि, सोयहि जोवण घरकंचुइहि । वणु दोसइ तरुकोलंतकइ, सोयहि, जोवण वष्णति कह। वणु दोसइ मूलरिणरुखरसु, सोयहि जोवण कयमयणरसु । वर्ण वीसइ वढियषवलवलि सोयहि हारावलि धवलवलि । हियउल्लउ. कामसरहि भरिउ लंकालंकारें . संभरिउ ।
मर्थात् नृत्य करता हुआ नीलकण्ठ मयूर लक्षित हो रहा है। सीता का यौवन भी मानव के मनरूपी मीनों को आकर्षित करने के लिए बंसी के समान है। यदि वन निर्मल भरपूर सरोवरों से युक्त है, तो सीता का यौवन भी अत्यन्त मधुर नाद से संयुक्त है। वन में धीरे-धीरे हिलते हुए कमल परिलक्षित हो रहे हैं। सीता का यौवन भी श्रेष्ठ मुख-कमल है। वन में यदि ललित लता-गह शोभायमान हैं तो सीता का यौवन भी बिम्बाधर के समान है।