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के रहे हैं कुछ विचारक लोग वेद और वेद के अनुगामी शास्त्रों को मानने वाले थे और कुछ विचारक वेद का आश्रय न लेकर स्वतंत्ररूप से तत्त्वों का विचार करते रहे हैं। वैदिक विचारकों में सबका मत एक नहीं है । सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक आदि मतों के प्रतिष्ठापक वेद को प्रभाणभूत मानते थे पर तत्त्वों के विषय में उनके मत परस्पर भिन्न हैं। वैदिकों के समान अवैदिक विचारक भी अति प्राचीन कालसे तत्त्वों की मीसांसा करते रहे हैं। जैन और बौद्धों ने तत्वों का जो विचार किया है, उसमें उन्होंने वेद का आश्रय नहीं लिया।
भिन्न भिन्न मतों के आचार्यों ने अपने अपने प्राचीन आगमों के उपदेश को प्रमाणों से सिद्ध करने के लिये तर्क से परिपूर्ण अनेक ग्रन्थों की रचना की है। एक और वैदिक विद्वान वेद का आश्रय लेकर आत्मा आदिके स्वरूप का प्रकाशन प्रमाणों द्वारा करते थे और दूसरी ओर जैन आचार्य द्वादशांगों में आत्मा आदिके जिस स्वरूप का प्रतिपादन है उसको युक्ति द्वारा सिद्ध प्रकाशित करने के लिये ग्रन्थों की रचना करते रहे हैं ।
जैन और जनेतर तत्त्वज्ञान में मुख्य फल मोक्ष माना जाता रहा है। तत्त्वज्ञानी राग द्वेष आदि का विनाश करके कों को क्षीण कर देते हैं और अंत में मोक्षको प्राप्त करते हैं। चेतन तत्त्व को स्वीकार करने वाले समस्त आचार्यों का मत आत्मा और मोक्षके विषयमें समान है । परन्तु आत्मा का स्वरूप और मोक्ष का स्वरूप किस प्रकार का है इस विषयमें मत विभिन्न हैं । जैनों ने अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर आत्मा आदि तत्त्वों का निरूपण किया है। वही अबाधित रूप से तर्क द्वारा प्रतिपादित होता है।