Book Title: Jain Bal Bodhak 04
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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चतुर्य भाग।
२६ उसको फाडकर संतान निकालनेका उपाय बताया। प्रसेनजित् अपनी माताके युगल उत्पन्न नहीं हुये थे। अकेले ही उत्पन्न हुये। इनके पिताने जिसके अकेली पुत्री पैदा हुई उससे विवाह करके विवाह करनेकी पद्धति प्रचलित की थी।
इनके पश्चात् चौदहवे नाभिराय कुलकर हुये, जिनका हाल अगले पाठमें जुदा बताया जायगा।
इन कुलकरोंमें किसीको अवधिज्ञान व किसीको जातिसरण होता था । प्रजाको जीवनका उपाय बतानेके कारण ये मनु कहलाते हैं और इन्होंने कई कुलोंकी स्थापना की अतः इनको कुलकर भी कहने लगे। इन्होंने दोषी मनुष्योंको दंड देनेका विधान भी बताया था और वह इस प्रकार था
पहिलेके प्रतिश्रुत, सन्मति, क्षेमकर, मंधर, सीमकर इन पांच कुलकरोंने दोष होने पर दोपियोंको 'हा' इस प्रकार पश्चातापरूप वोल देना ही दंड रक्खा था। इतने दंडसे ही वे फिर कभी दोष नहिं करते थे। और सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुमान् , यशस्वान् , अभिचंद्र इन पांचोंने 'हा' 'मा' इस प्रकार दो शन्दोंको बोलना ही दंड रक्खा था और अंतके चार कुलकरोंने 'हा' 'मा' 'धिक्' इस प्रकार तीन शब्द वोलकर दंड देना निश्चय किया था।